15 दिन में 2 ग्रहण और अब आया भूकंप, जानिए क्या है ग्रहण और भूकंप का ज्योतिषीय सम्बन्ध
ज्योतिष शास्त्र में इतनी कम अवधि के भीतर ग्रहण लगने को कतई अच्छा नहीं माना जाता। बहुत अनिष्ट कारक माना जाता है। कई तरह की समस्याएं बढ़ाता है और विभिन्न राशियों पर भी शुभ और अशुभ प्रभाव डालता है। दुनिया के लिए समस्याएं बढ़ती है। प्राकृतिक आपदाएं कहर मचाती हैं।
इस साल 2022 के आखिरी चंद्रग्रहण के बाद मंगलवार देर रात भूकंप के तेज झटकों ने लोगों को खौफजदा कर दिया। भूकंप का केंद्र नेपाल में था, जिसकी तीव्रता 6.3 थी. इस भूकंप का असर पूरे उत्तर भारत पर दिखा। दिल्ली-एनसीआर और लखनऊ में भी धरती कांप उठी। क्या भूकंप, तूफान और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का ग्रहण से कोई कनेक्शन होता है? आइए इस लेख के माधयम से-
ज्योतिष शास्त्र में इतनी कम अवधि के भीतर ग्रहण लगने को कतई अच्छा नहीं माना जाता। बहुत अनिष्ट कारक माना जाता है। कई तरह की समस्याएं बढ़ाता है और विभिन्न राशियों पर भी शुभ और अशुभ प्रभाव डालता है। दुनिया के लिए समस्याएं बढ़ती है। प्राकृतिक आपदाएं कहर मचाती हैं। विलक्षण घटनाएं भी होती हैं। अनहोनी भी होती है। 15 दिनों के अंदर चंद्र ग्रहण और सूर्य ग्रहण लगना यानी दो ग्रहणों का बनना विशेष खगोलीय घटनाओं में आते हैं।
शायद बहुत कम लोगों को यह मालूम होगा कि महाभारत काल में भी ग्रहणों का ऐसा ही एक दुर्लभ खगोलीय संयोग बना था। महाभारत के 18 दिनों के युद्ध के दौरान पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण तो 13 दिन बाद सूर्य ग्रहण लगा था। सूर्य ग्रहण के दौरान अर्जुन ने जयद्रथ का वध करने में सफलता पाई थी। जयद्रथ का वध न होता तो युद्ध का परिणाम कुछ भी हो सकता था।
ज्योतिषयों की मानें तो चंद्रग्रहण का सीधा संबंध भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा से होता है। ग्रहण को ज्योतिष में अशुभ और हानिकारक प्रभाव वाला माना जाता है. साल 2018 में 31 जनवरी को चंद्रग्रहण लगने से पहले दिल्ली-एनसीआर, पाकिस्तान और कजाकिस्तान में भूकंप के झटके महसूस किए गए थे , इस भूकंप की तीव्रता 6.1 थी। आज भी कुछ ऐसा ही हुआ। चंद्रग्रहण पूर्ण होने के कुछ ही घंटों बाद धरती के कांपने का सिलसिला शुरू हो गया। प्राचीन गणितज्ञ वराह मिहिर की वृहत संहिता के अनुसार, भूकंप आने के कुछ कारण होते हैं, जिसके हमें संकेत मिलते हैं। इन्हीं में से एक है ग्रहण योग।
विज्ञान कहता है कि भूकंप टेक्नोटिक प्लेट्स के आपस में टकराने के कारण आते हैं और फिर उसी से सुनामी का जन्म होता है। जबकि ज्योतिष के मुताबिक टेक्टोनिक प्लेटें ग्रहों के असर से खिसकती व टकराती हैं। भूकंप कितनी तीव्रता का होगा, ये प्लेटों पर ग्रहों के प्रभाव पर निर्भर करेगा।
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, चंद्रग्रहण जल व समुद्र पर असर डालता है। आने वाली प्राकृतिक आपदाओं को लेकर ग्रहण पहले ही इशारा दे देते हैं। हालांकि कई लोग इस पर विश्वास करते हैं कुछ नहीं। आमतौर पर भूकंप दिन के 12 बजे से सूरज छिपने तक और आधी रात से सू्र्य उदय होने के बीच ही आते हैं। ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक, भूकंप के उस क्षेत्र में आने की संभावना ज्यादा होती है, जहां ग्रहण का साफ प्रभाव देखने को मिलता है और जहां परिस्थितियां धरती के नीचे विपरीत हों। धरती की खास प्लेटों के पास ही भूकंप आता है। ग्रहण में ग्रह एक दूसरे पर अपनी छाया डालते हैं। यह छाया चाहे चंद्रमा पर पड़े या फिर पृथ्वी पर, दोनों पर इसका असर होता है। इसके अलावा जब किसी खास वजह से सूर्य की किरणें धरती पर नहीं पड़तीं तब चंद्रमा और पृथ्वी दोनों पर असर पड़ता है।
रहण के बाद वायुवेग बदल जाता है और पृथ्वी पर आंधी और तूफान का प्रभाव बढ़ जाता है। ज्योतिषों के मुताबिक, ग्रहण के दौरान सूर्य के आगे बढ़ने की दिशा की सीधी रेखा में पृथ्वी और चंद्रमा के आने पर भूगर्भीय हलचलों की आशंका बढ़ जाती है। ज्योतिष में ग्रहण की बहुत अहमियत है। वो इसलिए क्योंकि इसका असर लोगों की जिंदगी पर देखा जाता है। जब चंद्रमा धरती के सबसे नजदीक आता है तो ग्रैविटी का सबसे ज्यादा असर पड़ता है। इसी वजह से पूर्णिमा के दिन समंदर में सबसे ज्यादा ज्वार आते हैं और ग्रहण का प्रभाव और बढ़ जाता है। ग्रैविटी के घटने और बढ़ने की वजह से ही भूकंप आते हैं।
ध्यान दे इस लेख में दी गई जानकारी सामान्य धार्मिक मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है।