इलाहाबाद हाईकोर्ट का चार पार्टियों को नोटिस- क्यों ना जातीय रैलियों पर हमेशा के लिए लगा दें बैन

इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश के 4 प्रमुख राजनीतिक दलों- भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस को एक नया नोटिस जारी कर जवाब मांगा है कि राज्य में जाति आधारित रैलियों पर हमेशा के लिए पूर्ण प्रतिबंध क्यों नहीं लगा दिया जाना चाहिए और उल्लंघन के मामले में चुनाव आयोग को उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करनी चाहिए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट का चार पार्टियों को नोटिस- क्यों ना जातीय रैलियों पर हमेशा के लिए लगा दें बैन

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जाति आधारित रैलियों को लेकर सख्त रुख अपनाया है. इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ ने उत्तर प्रदेश के 4 प्रमुख राजनीतिक दलों- भाजपा, सपा, बसपा और कांग्रेस को एक नया नोटिस जारी कर जवाब मांगा है कि राज्य में जाति आधारित रैलियों पर हमेशा के लिए पूर्ण प्रतिबंध क्यों नहीं लगा दिया जाना चाहिए और उल्लंघन के मामले में चुनाव आयोग को उनके खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं करनी चाहिए. नौ साल पहले पारित किए गए अपने अंतरिम आदेश पर कोई कार्रवाई नहीं होने के बाद हाई कोर्ट ने नए नोटिस जारी किए. इस याचिका को पेश करने वाले शख्स ने कहा था कि राजनीतिक दलों की ऐसी अलोकतांत्रिक गतिविधियों के कारण कम संख्या वाली जातियां अपने ही देश में दोयम दर्जे की नागरिक बन गई हैं.

चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस जसप्रीत सिंह की बेंच ने वकील मोतीलाल यादव की ओर से दायर एक जनहित याचिका पर आदेश पारित किया, जिसमें उत्तर प्रदेश में जाति आधारित रैलियों पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई थी. बेंच ने अपने आदेश में सुनवाई की अगली तारीख 15 दिसंबर तय करते हुए इस मुद्दे पर जवाब देने के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त को नोटिस भी जारी किया है. इसी जनहित याचिका पर 11 जुलाई 2013 को सुनवाई करते हुए पीठ ने राज्य में जाति आधारित रैलियों के आयोजन पर अंतरिम रोक लगा दी थी.

अपने 2013 के आदेश में जस्टिस उमा नाथ सिंह और जस्टिस महेंद्र दयाल की बेंच ने कहा था, जाति-आधारित रैलियां आयोजित करने की अप्रतिबंधित स्वतंत्रता, पूरी तरह से नापसंद है और आधुनिक पीढ़ी की समझ से परे है. ऐसा आयोजन कानून के शासन को नकारने और नागरिकों को मौलिक अधिकारों से वंचित करने का कार्य होगा. 

बेंच ने तब यह भी कहा था, राजनीतिकरण के माध्यम से जाति व्यवस्था में राजनीतिक आधार की तलाश करने की उनकी कोशिश में, ऐसा लगता है कि राजनीतिक दलों ने सामाजिक ताने-बाने और सामंजस्य को गंभीर रूप से बिगाड़ दिया है. इसके परिणामस्वरूप सामाजिक विखंडन हुआ है. याचिकाकर्ता ने कहा था कि जातीय अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक समूहों के वोटों को लुभाने के लिए डिजाइन किए गए राजनीतिक दलों की ऐसी अलोकतांत्रिक गतिविधियों के कारण अपने ही देश में द्वितीय श्रेणी के नागरिकों की श्रेणी में आ गए हैं.