राजस्थान में बेटियों का व्यापार- उदयपुर में बेच दी गईं 46 बेटियां, तलाश में भटक रहे हैं मां-बाप

राजस्थान का गुजरात बार्डर लड़कियों की मंडी बन गया है जहां मजदूरी के लिए निकली लड़कियों के खरीदने बेचने का व्यपार होता है. बहुत सारी लड़कियां लौटी हैं तो बहुत से मां-बाप बरसों से अपनी बेटियों के घर लौटने का बाट जोह रहे है। कुछ लड़कियां तो बिन ब्याही मां बनकर लौटी हैं।

राजस्थान में बेटियों का व्यापार- उदयपुर में बेच दी गईं 46 बेटियां, तलाश में भटक रहे हैं मां-बाप

जब देश में हर तरफ बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के नारे लग रहे हैं तब देश के एक हिस्से में बेटियों का व्यापार हो रहा है. राजस्थान का गुजरात बार्डर लड़कियों की मंडी बन गया है जहां मजदूरी के लिए निकली लड़कियों के खरीदने बेचने का व्यपार होता है. बहुत सारी लड़कियां लौटी हैं तो बहुत से मां-बाप बरसों से अपनी बेटियों के घर लौटने का बाट जोह रहे है। कुछ लड़कियां तो बिन ब्याही मां बनकर लौटी हैं।

पहले पिता ने बहुत खोजा मगर जिस पटेल के खेत पर काम करती थी वो कुछ नहीं बता रहा था तो पिता ने पुलिस में मामला दर्ज करवाया तो पुलिस ने कोई सुनवाई नहीं की. फिर बेटी की याद में परेशान पिता ने खेत गिरवी रखकर पुलिस को पचास हजार रूपए दिए तब पुलिस ने पहले दलाल को गिरफ्तार किया और फिर इसके खरीददार को. पिता कहते हैं मैं अपनी बेटी और उसके बच्चे को पाल लूंगा पर कहीं नहीं भेजूंगा.

पिता बताते हैं कि लड़की मजदूरी के लिए गई थी. गुजरात का लड़का था वो ले गया. फिर मेरे साथ गलत काम किया. पुलिसवाले लेकर आए. पिता ने रिपोर्ट दर्ज करवाई थी. मैंने किसी को बताया नहीं, घर में बंद करके रखता था और मारता-पीटता था. पीड़िता के पिता ने बताया कि मजदूरी के लिए पटेल लेकर गया था. पर वहां से गांव से लेकर भाग गया था. पटेल बोला कि मैं क्या करूं तेरी बच्ची है तेरे को लाना है. 50 हजार रूपए जमीन गिरवी रखकर किराया दिया तो पुलिस लेकर आई। यह अकेली नहीं है. उदयपुर जिसे के कोटड़ा, झाड़ोल और पलासिया इलाके में घर-घर की यह कहानी है.

ठेकेदार के यहां मां के साथ चोले की फली चुन रही कोटड़ा के महाद की ममता ( बदला हुआ नाम) भी मजदूरी के लिए गई थी. पिता बचपन में चल बसे और अकेले मां थी. मां ने पैसे कमाने के लिए पटेल के हाथों गुजरात भेज दिया. वहां से 6 साल बाद 6 महीने पहले ही लौटी है. उसने बताया कि पटेल ने उसे बेच दिया. जो लेकर गया वो शराब पीकर मारता-पिटता था. ममता वहां मां भी बनीं मगर बच्चा कहां है पता नहीं. एक दिन इलाके के मजदूर मिले तो उनके साथ भाग आई. ममता कहती है कि मजदूरी करने बाप भी नही है, क्या करें, सात-आठ नहीने से आई है क्या करूं, कैसे रखूं. मजदूरी करने गई थी वहां से उठा ले गए.

आदिवासी लड़कियों को सड़क से, मेले से या खेत से उठा ले जाना यहां की आम घटना हो गई है. कई लोग तो इतने गरीब हैं कि पुलिस के पास जाते हीं नहीं. 14 साल की फूलवा ( बदला नाम) को मजदूरी करते जाते वक्त मोतरसाईकल पर उठा ले गए थे. 6 महीने तक गुजरात में अलग-अलग जगहों पर रखा. एक दिन शौच के लिए पहड़ी पर गई तो भागकर सड़क पर आई और वहां गाड़ीवाले के साथ कोटड़ा पहुंची.मजदूरी के लिए जाते वक्त रास्ते से उठा ले गए थे, वहीं बंदकर गर्मी में रखते थे, बाथरूम गई तो भाग गई. पिता कहते हैं कि ये रास्ते से मजदूरी के लिए जाते समय ले गए थे.

6 महीने बाद छोड़ा. कुछ अता-पता नहीं था. कारर्वाई करते तो क्या करते. ऐसी बात नहीं है कि पुलिस को बेटियों के इस व्यापार के बारे में पता नहीं है. ये सारा इलाका पहाड़ी है जहां दूर-दूर तक पुलिस-प्रशासन का कोई नामोनिशान नही है. पहड़ी के रास्ते दलाल और तस्कर बेटियों को उठा ले जाते हैं और फिर औने-पौने भाव में बेच देते हैं. पुलिस का कहना है कि पुलिस को पता है और यह गरीबी की वजह से दलालों के सक्रिय होने की वजह से हो रहा है.

उदयपुर के तत्कालिन आईजी हिंगलाज दान  का कहना है कि बहुत सारे मामलों में जानकार शामिल होते हैं  और बार्डर होने की वजह से तस्कर और दलाल असानी से इस इलाके में बेटियों के खरीद-फरोख्त में सफल हो जाते हैं. बेटियों का यह बाजार लंबे समय से फल फूल रहा है. आरोप है कि पुलिस भी इसमें खूब कमाती है. आज भी दर्जनों मां-बाप पुलिस थानों का चक्कर अपनी लाली बेटी की एक झलक पाने के लिए काट रहे हैं. इन लोगों ने पुलिस के आला अधिकारियों तक से गुहार लगाई मगर कोई कामयाबी नहीं मिली.

ये वो लड़कियां है जो गुजरात में अपने-अपने खरीदारों के चुंगल से निकलकर आई हैं. (काली बदला हुआ नाम) को उठाकर ले गए और एक महीने में चार बार बेचा. रात को सौदा करते और फिर खरीददार बलात्कार कर लेता तो आगे ले जाकर फिर सौदा करते. कहती है कि पौने दो लाख में जब फाईनल सौदा करके एक घर में रखा था तो उसने अपने मां बाप को खिड़की से देखा जो बेटी को खोजने के लिए उदयपुर के कोटड़ा से गुजरात के पाटन आए थे.

काली  काम के तलाश में जानकार बादल के साथ आई थी मगर वह सौदा कर भाग गया मगर सभी मां-बाप काली की मां बाप की तरह किस्मतवाले नही है. कोटड़ा के मामेर के आडू तो अपनी बेटी के साथ गुजरात मजदूरी के लिए गया था और रात में बेटी को उठा ले गए. तब से 5 साल हो गए इकलौती बेटी नहीं मिली. बेटी की तलाश में अब भी वह जाता है पर उसे पटेल मारपीट कर भगा देते हैं कि तेरी बेटी यहां नही है.  

आड़ू बताते हैं कि मजदूरी के लिए गया था वहां छोकड़ी को उठा लेकर गए. वहां जाने पर नहीं मिलती है कहते हैं कि तेरी छोकडी यहां नही है. पुलिस में बोला तो बोला, क्या करें रिपोर्ट दर्ज करवा दो. वहां जाने पर मारपीट करते हैं कि छोकड़ी यहां नही है. 

महाद के सोनापीता वेस्ता तो आठ साल से अपनी बेटी को तलाश रहे हैं. 11 साल की छोटी बेटी को साथ लेकर गया था. दस बारह दिन बाद काम से गांव लौटा. वहां जवांई था उसे खर्चा देकर भेज दिया और बेटी को बेच दिया. फिर मैं गया तो मिली नहीं. पुलिस में गया नहीं क्योंकि खर्चा नही था. सोनापीता ने कहा कि मेरी बेटी गुजरात गुजरात गये थे वहां से सब आए मगर मेरी बहन नहीं आई. मैंने पूछा तो किसी ने कोई जवाब नही दिया. पुलिस को लेकर वहां गया जहां मेरी बहन थी मगर पता नहीं पुलिस उनसे बात कर लौट आई और अब कुछ कहते नही है.

यहां काम करनेवाले सामाजिक संगठन के कार्यकरता सामाजिक कार्यकर्ता कह रहे हैं कि पूरे ईलाके में दलाल सक्रिय हैं और सारा खेल पुलिस की मिलीभगत से चल रहा है. आदिवासी भोलेभाले होते हैं. जिन्हें बहला-फुसलाकर अच्छी मजदूरी दिलाने के नाम पर इनका देह शोषण हो रहा है. इस इलाके के कई थानों में बेटियों की गुमशुदगी, अपहरण, तस्तकरी और बेचने के मामले दर्ज हैं. पुलिस का कहना है कि इस इलाके में इसके लिए सघन अभियान चलाया जा रहा है. आदिवासियों को जागृत करने के लिए यूनिसेफ भी सक्रिय है. पुलिस की लापरवाही का कोई एक आध मामला आया होगा मगर पुलिस इस तरह के मामलों में गंभीर है. 

सामाजिक कार्यकरता रीता देवी का कहना है कि गुजरात के पाटन, मेहसाणा, पालनपुर, हिम्मतनगर, बीजापुर और अहमदाबाद में इन लड़कियों की सप्लाई की जाती है.  यह पूरा इलाका ऐसा है जहां एक गांव राजस्थान में है तो बगल में दूसरा गुजरात में है. वहां ले जाई गईं लड़कियां पढ़ी लिखी नही है और भाषा की भी समस्या है जिसकी वजह से वह जान नहीं पाती की किस गांव में आई हैं और जबतक समझ पाती हैं तब तक देर हो जाती है।