क्या आप जानते है लक्ष्मी पूजन में बताशे का क्या महत्त्व है? जानिए आज लक्ष्मी-गणेश पूजन के मुहूर्त
मां लक्ष्मी को बताशे की मिठाई चढ़ाकर उन्हें प्रसन्न किया जाता है जिससे शुक्र को अपने अनुसार किया जा सकता है। यही कारण है कि बताशे के बिना लक्ष्मी पूजा पूरी नहीं मानी जाती।
दीपावली सनातन हिंदू धर्म का सबसे बड़ा पर्व है। रोशनी के इस त्योहार के दौरान देवी लक्ष्मी, कुबेर, गणपति और सरस्वती की पूजा की जाती है। कार्तिक अमावस्या की रात घर में सुख-समृद्धि सुनिश्चित करने के लिए लक्ष्मी पूजन किया जाता है। माता लक्ष्मी की पूजा में तमाम तरह की वस्तुएं और मिठाई रखी जाती हैं जिसमें से एक पारंपरिक मिठाई बताशे हैं. दिवाली वाले दिन बताशे का खास महत्व है। ऐसा माना जाता है कि बताशे चढ़ाने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती हैं, साथ ही बताशे का ज्योतिषीय महत्व भी है।
ऐसी मान्यता है कि धन वैभव के दाता शुक्र हैं। ऐसे में मां लक्ष्मी को बताशे की मिठाई चढ़ाकर उन्हें प्रसन्न किया जाता है जिससे शुक्र को अपने अनुसार किया जा सकता है। यही कारण है कि बताशे के बिना लक्ष्मी पूजा पूरी नहीं मानी जाती। ज्योतिष भी बताते हैं कि शुक्र को प्रसन्न करने के लिए हम लक्ष्मी जी को बताशे चढ़ाते हैं।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सफेद और मीठी बताशा शुक्र ग्रह से जुड़ी हुई है। यह धन और समृद्धि देने वाला ग्रह है। ऐसे में पूजा में मुख्य रूप से शुक्र और देवी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए लह्या और बताशे का भोग लगाया जाता है।
अगर बताशे को स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो यह बेहद ही लाभदायक है। जब हम लंबे समय तक उपवास रहते हैं तो हमारे शरीर की पाचन शक्ति कम हो जाती है और हम कमजोर महसूस करने लगते हैं। ऐसे में इसके सेवन से पाचन भी अच्छा होता है और शरीर से कमजोरी भी दूर होती है। इसलिए बताशे न सिर्फ धार्मिक बल्कि स्वास्थ्य कारणों से भी काफी महत्वपूर्ण है।
जानिए लक्ष्मी-गणेश पूजन के मुहूर्त-
अमावस्या तिथि 24 अक्टूबर 2022 दिन सोमवार को सायं 5:04 से आरंभ होकर अगले दिन अर्थात 25 अक्टूबर 2022 दिन मंगलवार को सायं 4:35 तक व्याप्त रहेगा। इस प्रकार अमावस्या की सम्पूर्ण रात 24 अक्टूबर को ही मिल रहा है | इसके अतिरिक्त इस अमावस्या तिथि के आरम्भ के साथ दिन में 3:18 बजे से सम्पूर्ण रात चित्रा नक्षत्र तथा दिन में 3:58 के बाद से ही विष्कुम्भ योग पूरी रात व्याप्त रहेगी।
साथ ही सोमवार को ही प्रदोष काल का भी बहुत ही उत्तम योग मिल रहा है |धर्म शास्त्रो के अनुसार दीपावली के पूजन में प्रदोष काल अति महत्त्वपूर्ण होता है | दिन-रात के संयोग काल को ही प्रदोष काल कहते है , जहां दिन विष्णु स्वरुप है वहीँ रात माता लक्ष्मी स्वरुपा है ,दोनों के संयोग काल को ही प्रदोष काल कहा जाता है |
प्रदोष काल में ही माता लक्ष्मी भगवान गणेश एवं कुबेर आदि सहित दीपावली पूजन का श्रेष्ठ विधान है तथा प्रदोष काल में ही दीप प्रज्वलित करना उत्तम फल दायक होता है। प्रदोष काल शाम 05:30 से 07:45 बजे तक रहेगा | चर नामक शुभ चौघड़िया प्राप्त होने के कारण श्रेष्ठ है।
24 अक्टूबर दिन सोमवार को स्थिर लग्न वृष रात में 06:54 से 8:50 बजे तक । जो अति श्रेष्ठ है एवं प्रदोष काल से युक्त है। साथ ही 7:06 बजे तो शुभ चौघड़िया भी है अतः दीप प्रज्वलित करने का श्रेष्ठ मुहुर्त्त।
25 अक्टूबर दिन सोमवार को स्थिर लग्न मध्य रात्रि बाद 01:04 से 3:18 बजे रात तक एवं शुभ चौघड़िया के साथ 1:38 से 3:16 बजे तक ।
दीपावली पूजन हेतु शुभ चौघड़िया समय :-
(1) रात में 5:38 बजे से 07:06 बजे तक चर
(2) रात में 10:22 से 12:00 बजे तक लाभ
(3) रात में 1:38 से 3:16 बजे तक शुभ
(4) रात में 3:16 से 4:54 बजे तक अमृत
(5) भोर में 5:54 से 06:30 बजे तक चर
महानिशीथ काल अर्थात महानिशा काल मध्यरात्रि 11:20 से 12:10 बजे के मध्य है । निशा पूजा ,काली पूजा , तांत्रिक पूजा के लिए शुभ चौघड़िया के साथ मध्य रात में 11:14 से बजे से 12:00 बजे तक है जो अति महत्त्वपूर्ण, अति शुभ एवं कल्याण कारक मुहुर्त्त है।