अयोध्या में राममंदिर बनने के बाद भी बनी रहेगी रामकोट की पहचान, कोई भी पौराणिक निर्माण नहीं तोड़ा जाएगा

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने स्पष्ट किया है कि पौराणिक मंदिरों की सुरक्षा से ही रामकोट व राममंदिर की पहचान है। कोई भी पौराणिक मंदिर नहीं तोड़ा जाएगा और न ही इसकी जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि साजिश के तहत ऐसी अफवाह फैलाई जा रही है। इसमें सच्चाई नहीं है।

अयोध्या में राममंदिर बनने के बाद भी बनी रहेगी रामकोट की पहचान, कोई भी पौराणिक निर्माण नहीं तोड़ा जाएगा

अयोध्या में श्री राममंदिर निर्माण के साथ-साथ दिसंबर से परकोटे का भी निर्माण शुरू हो जाएगा। परकोटा व राम जन्मभूमि पथ के निर्माण के बीच कई प्राचीन व पौराणिक मंदिर आ रहे हैं। ऐसे में बुधवार को दिन भर ये अटकलें तेज रहीं कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट पौराणिक मंदिरों को अधिग्रहीत कर उन्हें तोड़ने की योजना बना रहा है।

रामनगरी का रामकोट मोहल्ला पौराणिक एवं ऐतिहासिक मान्यताओं को समेटे है। अयोध्या की जो विशेषता है वह राम जन्मभूमि के कारण है। राम जन्मभूमि की रक्षा के लिए लिए चारों तरफ कोट (दुर्ग) बनाए गए थे। कोटेश्वर महादेव, मतगजेंद्र, क्षीरेश्वरनाथ सहित धनयक्षकुंड स्थापित किए गए। इसी कारण राम जन्मभूमि के चारों ओर के क्षेत्र को रामकोट कहा गया। रामकोट साधकों की भूमि रही है। बड़े-बड़े साधकों ने यहां तप, तपस्या और साधना की। इसी रज पर भगवान राम का बचपन बीता। ऐसी मान्यता है कि रामकोट में अदृश्य रूप में शक्तियां विराजती हैं। इसी  मान्यता के चलते रामकोट की परिक्रमा का भी विधान है।

श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने स्पष्ट किया है कि पौराणिक मंदिरों की सुरक्षा से ही रामकोट व राममंदिर की पहचान है। कोई भी पौराणिक मंदिर नहीं तोड़ा जाएगा और न ही इसकी जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि साजिश के तहत ऐसी अफवाह फैलाई जा रही है। इसमें सच्चाई नहीं है। सुग्रीव किला से राम जन्मभूमि तक 800 मीटर लंबा राम जन्मभूमि पथ का निर्माण कार्य चल रहा है। इस निर्माण की जद में अमावां राममंदिर व रंगमहल के पीछे का कुछ हिस्सा भी आ रहा था। अमावां राममंदिर के प्रबंधक पूर्व आईपीएस किशोर कुणाल ने ट्रस्ट को तीन सुझाव दिए थे।

जिसमें से एक सुझाव यह भी था कि मंदिर का प्रवेश मार्ग दक्षिण की ओर होना वास्तु शास्त्र के हिसाब से अनुचित है। ऐसी दशा में उत्तर-दक्षिण दोनों तरफ रास्ते को बढ़ाकर मध्य से सीता रास्ता बनाया जाए। जो रामगुलेला चौराहा तक होना चाहिए। इसी मार्ग पर राममंदिर का सिंहद्वार भी बनेगा। हालांकि इस रास्ते में पौराणिक रंगमहल, जगन्नाथ मंदिर, रामकचेहरी व लवकुश मंदिर आ रहे थे। इस बीच इन मंदिरों को अधिग्रहीत करने व तोड़े जाने की अफवाह भी तेजी से फैल गई। जिसके चलते मंदिर के पीठाधिपतियों की चिंता भी बढ़ गई।

बताया गया कि18 व 19 नवंबर को हुई बैठक में ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र की मौजूदगी में मंदिर के महंतों के साथ बैठक भी की थी। इस बैठक में किशोर कुणाल भी मौजूद रहे। इसके बाद पौराणिक मंदिरों के अधिग्रहण की चर्चाएं और भी तेज हो गई थी। इस बीच चंपत राय ने बुधवार को स्पष्ट किया कि जन्मभूमि पथ के निर्माण का गतिरोध दूर हो गया है। किसी भी पौराणिक मंदिर को नहीं तोड़ा जाएगा और न ही इसकी जरूरत है।