6 रुपये के छुट्टे के फेर में गई सरकारी नौकरी, अदालत ने भी राहत देने से किया इनकार

विजिलेंस टीम ने एक रेलवे पुलिस बल (RPF) कांस्टेबल को नकली यात्री बनाकर क्लर्क राजेश वर्मा के काउंटर पर पहुंचाया. खिड़की पर जाकर उसने कुर्ला टर्मिनस से आरा (बिहार) तक के टिकट के लिए अनुरोध किया. किराया ₹214 था और यात्री ने ₹500 का नोट क्लर्क वर्मा को दिया. वर्मा को ₹286 लौटाने थे लेकिन लौटाए केवल ₹280. यानी ₹6 कम. 

6 रुपये के छुट्टे के फेर में गई सरकारी नौकरी, अदालत ने भी राहत देने से किया इनकार

महज 6 रुपये नहीं लौटाने के चलते रेलवे के एक बुकिंग क्लर्क को नौकरी से हाथ धोना पड़ गया. अब बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी उसे राहत देने से इनकार कर दिया है. 26 साल पहले विजलेंस टीम की छापेमारी में पकड़े जाने के बाद क्लर्क को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था.

मायनगरी मुंबई का यह पूरा मामला है. दरअसल, 31 जुलाई 1995 को राजेश वर्मा रेलवे में क्लर्क बने थे. 30 अगस्त 1997 को वर्मा कुर्ला टर्मिनस जंक्शन मुंबई में कंप्यूटरीकृत करंट बुकिंग कार्यालय में यात्रियों के टिकट बुक कर रहे थे.

इसी दौरान विजिलेंस टीम ने एक रेलवे पुलिस बल (RPF) कांस्टेबल को नकली यात्री बनाकर क्लर्क राजेश वर्मा के काउंटर पर पहुंचाया. खिड़की पर जाकर उसने कुर्ला टर्मिनस से आरा (बिहार) तक के टिकट के लिए अनुरोध किया. किराया ₹214 था और यात्री ने ₹500 का नोट क्लर्क वर्मा को दिया. वर्मा को ₹286 लौटाने थे लेकिन लौटाए केवल ₹280. यानी ₹6 कम. 

इसके बाद विजिलेंस टीम ने बुकिंग क्लर्क राजेश वर्मा के टिकटिंग काउंटर पर छापेमारी की. लेकिन टिकट बिक्री के हिसाब से उनके रेलवे कैश में 58 रुपये कम मिले. वहीं, क्लर्क की सीट के पीछे रखी स्टील की अलमारी से 450 रुपये की राशि बरामद की गई. विजिलेंस टीम के अनुसार, यह राशि वर्मा को यात्रियों से अधिक किराया वसूली से मिली।

वर्मा के खिलाफ आरोपों की अनुशासनात्मक जांच की गई. रिपोर्ट आने पर 31 जनवरी 2002 को उन्हें दोषी ठहराया गया और नौकरी से निकाल दिया गया. वर्मा ने इस आदेश को अपीलीय प्राधिकरण के समक्ष चुनौती दी. लेकिन 9 जुलाई 2002 को इसे खारिज कर दिया. फिर वर्मा 23 अगस्त 2002 को पुनरीक्षण प्राधिकरण के समक्ष गए. 17 फरवरी 2003 को उनकी दया याचिका भी खारिज कर दी गई.

वर्मा की ओर से पेश वकील मिहिर देसाई ने अदालत के समक्ष कहा था कि छुट्टे पैसे की उपलब्धता न होने के कारण यात्री को 6 रुपये तुरंत वापस नहीं किए जा सके और नकली यात्री से शेष राशि की वापसी के लिए इंतजार करने को कहा गया था.

वकील देसाई ने अदालत में दलील दी कि जिस अलमारी में कथित तौर पर 450 रुपये की राशि पाई गई थी, वह क्लर्क वर्मा के नियंत्रण में नहीं थी. वह अलमारी बुकिंग कार्यालय में काम करने वाले सभी कर्मचारियों के उपयोग के लिए थी और असल में मुख्य बुकिंग पर्यवेक्षक के लिए आवंटित थी.

हालांकि, जस्टिस नितिन जामदार और एसवी मार्ने की बेंच ने कहा कि उस दौरान न तो फर्जी यात्री और न ही किसी गवाह ने क्लर्क वर्मा को बाकी के 6 रुपये लौटाने की बात कहते सुना था. इसका रिकॉर्ड पर कोई सबूत नहीं है. मतलब वर्मा का 6 रुपये की राशि लौटाने का कोई इरादा ही नहीं था.

हाईकोर्ट की बेंच ने यह भी कहा कि अलमारी का स्थान वर्मा की खिड़की के ठीक पीछे था और उनकी वहां तक पहुंच थी. अनुशासनात्मक जांच में फर्जी यात्री से अधिक किराया वसूलना भी साबित हुआ है. इस मामले में वर्मा को अपना पक्ष रखने का अवसर मिल चुका है. वहीं, रेलवे की ओर से पेश वकील सुरेश कुमार ने हाईकोर्ट से केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण (सीएटी) कैट के आदेश को कायम रखने का आग्रह किया.