Guru Pornima गुरु पूर्णिमा कैसे मनाये गुरु पूर्णिमा का महत्व गुरु को क्या गुरुदक्षिणा देते है

पृथिवी को हम सब धरती माता भी कहते है माता ही प्रथम गुरु होती है तो आइये इस गुरु पूर्णिमा पर हम सब अपनी धरती माँ को गुरूत्व प्रदान करने का संकल्प ले हम संकल्प ले वृक्षारोपण का ।हम संकल्प ले पर्यावरण के प्रदूषण को दूर करने का ।संकल्प ले जीव हत्या बंद करने का।

गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:।

गुरुर्साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरुवे नम:।।

 

सर्वप्रथम भी एक गुरु हैं जो साक्षात् परमगुरु परमात्मा हैं। माता-पिता से भी पहले इन्हे गुरु माना गया है। जिन्होंने समस्त प्राणिमात्र को जीवन से भरा है। जीवन में यदि आप आगे बढ़ना चाहते हो तो पर्यावरण रुपी माता-पिता को हमेशा खुश रखे, गुरुजनो का हमेशा सम्मान करे। ये दोनों खुश होंगे तो भगवान् तो स्वयं ही प्रसन्न हो जायेंगे।

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विभिन्‍नताओं से भरे हमारे देश में हर सम्बन्ध को सम्‍मान देने और उनकी कृतज्ञता को व्यक्त करने के लिए कोई न कोई त्‍योहार या फिर कोई न कोई अवसर निहित है। इसी प्रकार गुरु पूर्णिमा का पर्व पूरे देश में धूमधाम के साथ  आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु के प्रति आदर- सम्‍मान और अपनी कृतज्ञता व्यक्त करने के पर्व के रूप में मनाते हैं।  सनातन धर्म में गुरु की बहुत महत्ता बताई गई। गुरु का स्थान समाज में सर्वोपरि है। गुरु उस चमकते हुए चंद्र के समान होता है, जो अंधेरे में रोशनी देकर पथ-प्रदर्शन करते है । गुरु के समान अन्य कोई नहीं होता है, क्योंकि गुरु भगवान तक जाने का मार्ग बताते है। कबीर ने गुरु की महिमा का गुणगान करते हुए लिखा है-

 

गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय।

बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।


आषाढ़ की पूर्णिमा को यह पर्व मनाने का उद्देश्य है कि जब तेज बारिश के समय काले बादल छा जाते हैं और अंधेरा हो जाता है, तब गुरु उस चंद्र के समान है, जो काले बादलों के बीच से धरती को प्रकाशमान करते हैं। 'गुरु' शब्द का अर्थ ही होता है कि तम का अंत करना या अंधेरे को खत्म करना! इस दिन से ऋतु परिवर्तन भी होता है अतः इस दिन वायु की परीक्षा करके आने वाली फसलों का अनुमान भी किया जाता है.

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शास्त्रों की मानें तो अनेक ग्रन्थों की रचना करने वाले वेदव्यास को सभी मानव जाति का गुरु माना गया हैं। बताया जाता हैं कि आज से लगभग 3 हजार ई. पूर्व आषाढ़ माह की पूर्णिमा को महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। तब से ही उनके मान-सम्मान एवं कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु आषाढ़ शुक्ल की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा मनाई जाती हैं। भारतीय संस्कृति में गुरुओं को ब्रह्माण्ड के प्रमुख देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान पूज्यनीय माना गया हैं। पुराणों में कहा गया हैं की गुरु ब्रह्मा के समान हैं और मनुष्य योनि में किसी एक विशेष व्यक्ति को गुरु बनाना बेहद जरूरी हैं। क्योंकि गुरु अपने शिष्य का सर्जन करते हुए उन्हें सही राह दिखाता हैं। इसलिए गुरु पूर्णिमा के दिन बहुत से लोग अपने ब्रह्मलीन गुरु या संतो के चरण एवं उनकी चरण पादुका की पूजा अर्चना करते हैं। गुरु के प्रति समर्पण भाव गुरु पूर्णिमा के दिन देखा जा सकता हैं।प्राचीन काल में जब विद्यार्थी गुरु के आश्रम में निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करता था, तो इसी दिन श्रद्धा भाव से प्रेरित होकर अपने गुरु का पूजन करके उन्हें अपनी शक्ति, अपने सामर्थ्यानुसार दक्षिणा देकर कृत कृत्य होता था।


स्वतः ही एक गीत मन मे गूंज रहा है -
"यह तो सच है कि भगवान है, है मगर फिर भी अनजान है,
धरती रूप माँ बाप का, उस विधाता की पहचान है"। ।

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संसार का सबसे पवित्र एवं प्रेमपूर्ण षब्द है - ‘माँ’। धरती माँ से हमे धैर्य, स्थिरता, और परोपकार सीखने को मिलता है पृथिवी  को हम सब धरती माता भी कहते है माता ही प्रथम गुरु होती है तो आइये इस गुरु पूर्णिमा पर हम सब अपनी धरती माँ को गुरूत्व प्रदान करने का संकल्प ले हम संकल्प ले वृक्षारोपण का हम संकल्प ले पर्यावरण के प्रदूषण को दूर करने का संकल्प ले जीव हत्या बंद करने का

वृक्ष से हम उदारता और क्षमाशीलता जैसे गुण तो सीख ही सकते हैं, अब यह भी दिख रहा है कि वृक्ष हमें सौर ऊर्जा का इस्तेमाल भी सिखा सकते हैं। प्रकृति इंसान से कई गुना बेहतर वैज्ञानिक और इंजीनियर है, इसीलिए अक्सर वैज्ञानिक नई तकनीक ईजाद करने के लिए प्रकृति से सीखते हैं या उसकी नकल की कोशिश करते  आबादी के बढ़ने और औद्योगिक गतिविधियों की वजह से हरियाली भी घट रही है।

धरती पर किसी का राज नहीं है। इंसान का‌ वहम कि उसका कहीं भी राज है।  तकरीबन पूरी धरती के सब इंसान और उनके राष्ट्र कोरोनावायरस के आतंक से प्रभावित होकर प्रार्थना कर रहे हैं। तो राज किसका है धरती पर ?  धरती का। हमेशा था है और रहेगा।

तो आइये इस गुरु पूर्णिमा में हम अपनी धरती माँ और प्रकृति को गुरु रूप में स्वीकार करे और इस गुरु पूर्णिमा को हम सब मिल कर असंख्य पौधे रोपित कर अपनी धरती माँ को सच्ची गुरु दक्षिणा प्रदान करे।

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