गुरु शिष्य का मूल है और शिष्य गुरु का फूल है जानिए गुरु की महिमा
गुरु को ब्रह्मा कहा गया क्योंकि वह शिष्य को बनाता है नव जन्म देता है। गुरु, विष्णु भी है क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है गुरु, साक्षात महेश्वर भी है क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है। कहते है की गुरु की गोद में निर्माण और प्रलय दोनों ही होते है.
यह तन विष की बेलरी गुरु अमृत की खान
सीस दिए जो गुरु मिले तो भी सस्ता जान
गुरु का स्थान ईश्वर से भी श्रेष्ठ है. हमारे सामाजिक जीवन का आधार स्तंभ गुरु है। कई ऐसे गुरु हुए हैं जिन्होंने अपने शिष्य को इस तरह शिक्षित किया कि उनके शिष्यों ने राष्ट्र की धारा को ही बदल दिया। आचार्य चाणक्य ऐसी महान विभूति थे जिन्होंने अपनी विद्वत्ता और क्षमताओं के बल पर भारतीय इतिहास की धारा को बदल दिया।
गुरु की महिमा बताना तो सूर्य को दीपक दिखाने के समान है. गुरु की कृपा हम सब को प्राप्त हो ऐसा नित नूतन प्रयास करते रहना है. अपनी महत्ता के कारण गुरु को ईश्वर से भी ऊँचा पद दिया गया है। शास्त्र वाक्य में ही गुरु को ही ईश्वर के विभिन्न रूपों- ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश्वर के रूप में स्वीकार किया गया है।
गुरू ब्रह्मा गुरू विष्णु,
गुरु देवो महेश्वरा
गुरु साक्षात परब्रह्म,
तस्मै श्री गुरुवे नमः
गुरु को ब्रह्मा कहा गया क्योंकि वह शिष्य को बनाता है नव जन्म देता है। गुरु, विष्णु भी है क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है गुरु, साक्षात महेश्वर भी है क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है। कहते है की गुरु की गोद में निर्माण और प्रलय दोनों ही होते है.
गुरु चाणक्य , कुशल राजनीतिज्ञ एवं प्रकांड अर्थशास्त्री के रूप में विश्व विख्यात हैं. उन्होंने अपने वीर शिष्य चंद्रगुप्त मौर्य को शासक पद पर सिंहासन आरूढ़ करके अपनी जिस विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया उससे समस्त विश्व परिचित है. गुरु हमारे अंतर्मन को आहत किए बिना हमें जीवन जीने योग्य बनाते हैं. विश्व को देखने का दृष्टिकोण गुरु की कृपा से ही मिलता है.
प्राचीन काल से चली आ रही गुरु महिमा को शब्दों में लिखा नहीं जा सकता।
संत कबीर कहते हैं ..
सब धरती कागज करूं, लेखनी सब बन राय
सात समंदर की मसि करूं गुरु गुण लिखा न जाए
ऐसे गुरु की कृपा से ही प्रकृति व परमात्मा सहायक बने रहते हैं. गुरु ब्रह्मांड की विशेष उर्जा है ,किस महापुरुष व परम के साथ जुड़कर वह उसे गुरु बनाती है यह उस की पात्रता पर निर्भर है.
गुरु शिष्य का मूल है और शिष्य गुरु का फूल है