गुरु की खोज अगर आप अभी भी सच्चे गुरु की खोज में भटक रहे है तो इसको जरूर पढ़े
जितने मार्ग सुझाए गए हैं वह सभी ईश्वर की ओर ले जाते हैं और प्रत्येक मार्ग से गंतव्य तक पहुंचे हुए ऋषि, मुनि, सूफी, संत ,इतिहास के पन्नों में मिल जायेंगे ।
पानी पीजै छान के,
गुरु कीजै जान कै ।।
यदि हम सोंचे कि हमें ऐसे गुरु मिल जाए जो संसार में सबसे श्रेष्ठ हों, जिनसे गलतियां होती ही न हों और जो सारे संसार में आदर्श हों, तो ऐसा तो संभव नहीं है । मानव देह में ही हमें गुरु की तलाश करनी है और मनुष्य होने के नाते त्रुटियां बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों से होती आई हैं, जनसामान्य की तो बात ही क्या है ।
गहराई से सोचा जाए तो गुरु व्यक्ति का नहीं बल्कि तत्व का नाम है। जो रास्ता बताएं वही गुरु है, यदि हमें पुस्तक, प्रकृति, धर्म ग्रंथ किसी महात्मा के प्रवचन या किसी अन्य प्रकार से मार्ग मिल जाए तो एक प्रकार से गुरु का मिलना ही कहा जाएगा ,इसके अतिरिक्त हमें ऐसा गुरु चाहिए जिससे हम आमने सामने बैठ कर अपनी जिज्ञासा/ अपनी बात कर सकें, अपने सांसारिक जीवन की स्थिति से अवगत करा कर समाधान पा सकें ।
इस प्रकार हमें शरीर धारी गुरु की खोज अनवरत करते रहना चाहिए । कोई भी व्यक्ति यह दावा नहीं कर सकता कि उसका मार्ग ही ईश्वर तक पहुंचा सकता है । अनेक मार्ग हैं एवं अनेक प्रकार की योग साधनाएं हैं ,जो जिससे पहुंच जाये।
गंगा एक ,घाट बहुतेरे
जितने मार्ग सुझाए गए हैं वह सभी ईश्वर की ओर ले जाते हैं और प्रत्येक मार्ग से गंतव्य तक पहुंचे हुए ऋषि, मुनि, सूफी, संत ,इतिहास के पन्नों में मिल जायेंगे ।
एक राजा की कहानी आपने सुनी होगी ,
उसने सर्वश्रेष्ठ धर्म कौन सा है यह जानने की घोषणा की । विभिन्न धर्मों के अनेक विद्वान अपने अपने धर्म की श्रेष्ठता प्रमाणित करने इकट्ठे हुए और दृश्य देखते ही बनता था ।प्रत्येक विद्वान अपने धर्म को सर्वश्रेष्ठ तथा दूसरे के धर्म को अयोग्य कह रहा था। उत्तेजना इस स्तर पर आ पहुंची कि विद्वान जन मारपीट करने को उतारू हो गए । तब राजा ने सबको विश्राम करने को कहा । इस बीच एक संत आए और उन्होंने कहा कि राजन तुम सर्वश्रेष्ठ धर्म देखना चाहते हो या जानना चाहते हो । राजा ने कहा यदि आप सर्वश्रेष्ठ धर्म दिखा दे तो बड़ी कृपा होगी ।
संत , राजा को नदी के किनारे ले गए और पार उतरने के लिए नौका मंगाने को कहा राजा ने नौका मंगा दी किंतु संत ने उसमें त्रुटि निकाल कर वापस कर दी । राजा अनेक प्रकार की नौकाएं मंगाता गया और संत ने एक नई त्रुटि निकालकर नौका वापस करते गए ।अंत में राजा ने खींज कर कहा कि स्वामी जी आखिरकार आपको नदी के पार ही तो जाना है ,आप किसी भी नौका में बैठ जाइए यह आपको नदी के उस पार पहुंचा देगी।
संत ने कहा, राजन ! मैं तुम्हें यही बात समझाना चाहता था कि तुम सनातन से जुड़े किसी भी धर्म को स्वीकार कर लो वह धर्म आप को गंतव्य तक पहुंचा देगा। यदि आप अनेक नावो पर एक साथ बैठने का प्रयास करेंगे तो पार उतरना कठिन व कष्टप्रद भी होगा । जीवन में सफलता एवं परमार्थ प्राप्ति हेतु हम सबको निरंतर सच्चे गुरु की खोज करते रहना चाहिए।
हर गुरु अपने योग्य शिष्य के कारण विख्यात होता है, जाना जाता है। अतः कह सकते हैं कि एक अच्छे गुरु के बिना योग्य शिष्य का और अच्छे शिष्य के बिना योग्य गुरु का कोई अस्तित्व नहीं रहता। इस तरह दोनों एक-दूसरे के पूरक होते हैं, वरना बहुत से ऐसे गुरु होंगे जो इसलिए अपनी पहचान नहीं बना पाए, क्योंकि उन्हें कोई योग्य शिष्य नहीं मिला या बहुत से योग्य शिष्य एक श्रेष्ठ गुरु के अभाव में गुमनामी के अँधेरों में खो गए।
दूसरी ओर, सच्चे गुरु को पाना कठिन नहीं। लेकिन ऐसा क्यों होता है कि केवल कुछ ही लोगों को उनका सच्चा गुरु मिल पाता है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि वे गुरु को खोजने से पहले अपने अंदर बैठे शिष्य को खोज चुके होते हैं, जिसके अंदर कुछ सीखने और कुछ कर दिखाने की ललक होती है।
सिकंदर महान और उनके गुरु अरस्तु से जुडी कथा का उल्लेख यहाँ करना जरूरी है-
सिकंदर अपने गुरु अरस्तु के साथ एक बार बरसात के दिनों में कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक उफनता हुआ नाला मिला। इस पर गुरु-शिष्य में पहले नाला पार करने को लेकर वाद विवाद छिड़ गया, क्योंकि नाला दोनों के लिए नया था और उसकी गहराई का भी उन्हें अंदाजा नहीं था।
सिकंदर ने गुरु की बात मानने से इंकार कर दिया और वह नाले में उतर गया। सावधानीपूर्वक आगे बढ़ते हुए उसने नाला पार कर लिया। इसके बाद उसने अरस्तु से नाला पार करने को कहा। अरस्तु भी उसी जगह से पार पहुंच गए। पार पहुंचकर वे अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए बोले- सिकंदर, आज तुमने हमारी बात न मानकर हमारा अपमान किया है।
इसके पहले तो कभी ऐसा नहीं हुआ कि तुमने हमारा कहना न माना हो। फिर आज ऐसा क्यों? क्या इसलिए कि तुम अब सम्राट हो गए हो? इस पर सिकंदर बोला- मुझे गलत न समझें गुरुदेव। मैंने सम्राट के नाते नहीं, बल्कि एक शिष्य के नाते पहले नाला पार करके केवल अपना फर्ज निभाया।
अरस्तु- कैसा फर्ज?
सिकंदर- अपने गुरु की सुरक्षा का फर्ज। क्योंकि यदि अरस्तु रहता है तो वह हजारों सिकंदर खड़े कर सकता है, लेकिन सिकंदर अरस्तु कहां से लाएगा। इसलिए मैं नाले में बह जाता तो उतना नुकसान नहीं होता, जितना आपके बह जाने से। अब आप ही बताएं, मैंने क्या गलत किया?
अरस्तु जैसे महान गुरु को सिकंदर जैसे योग्य शिष्य ने प्रसिद्धि दिलाई । इसलिए तो कहते हैं कि
हर गुरु को तलाश होती है एक योग्य शिष्य की।
यानी जितनी चाह एक व्यक्ति की होती है कि उसे एक सच्चा गुरु, सच्चा मार्गदर्शक मिल जाए, उतनी ही चाह एक गुरु की भी होती है कि उसे एक सच्चा शिष्य मिल जाए, जिसे वह अपना उत्तराधिकारी बना सके।
एक ऐसा शिष्य, जो उससे मिले ज्ञान के बल पर उसका नाम रोशन कर सके, वरना उसका ज्ञान तो उसके साथ ही चला जाएगा। यानी कह सकते हैं कि एक श्रेष्ठ शिष्य ही श्रेष्ठ गुरु की पहचान होता है, पहचान बनाता है।
इसलिए यदि आप भी अपनी जिंदगी संवारने के लिए एक गुरु की खोज में है तो उन्हें खोजने से पहले अपने अंदर बैठे शिष्य को जगाइए यानी अपने अंदर एक सच्चा शिष्य बनने की खूबियां पैदा कीजिए। यदि आपने उसे खोज लिया तो यकीन मानिए, आपको आपके सद्गुरु जल्द ही मिल जाएँगे, क्योंकि तब आप उनकी नजरों से बच नहीं पाएंगे और आपके अंदर बैठा शिष्य गुरु से सफलता प्राप्ति के सारे गुर सीखता जाएगा। और जब आप कुछ बन जाएँगे, तो इससे उनका भी नाम होगा।