यहाँ जानिए, क्यों डाले जाते है गंगाजल में तुलसी के पत्ते-धार्मिक महत्व और मान्यता
तुलसी दल के बिना भगवान का प्रसाद यानी चरणामृत अधूरा है.सनातन हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार एक तांबे या पीतल के पात्र में कुछ जल मिलाने के बाद उसमें गंगाजल और तुलसी दल मिलाने से वह जल अमृत की तरह पवित्र और शुद्ध बन जाता है.
पूजा की थाली और भगवान के प्रसाद में तुलसी दल और गंगाजल का अपना अलग महत्व है. सनातन हिंदू धर्म की मान्यताओं के साथ तुलसी और गंगा जल का औषधीय महत्व भी है. हिंदू धर्म में तुलसी के पौधे का विशेष महत्व है. जैसा कि हम जानते हैं कि सनातन हिंदू धर्म में गंगा को पवित्र नदी माना जाता है। पुराणों के अनुसार, गंगा नदी भगवान विष्णु के चरण से निकली है और शिव की जटा में इनका वास है।
माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वहां पर लक्ष्मी माता के साथ भगवान विष्णु की भी पूर्ण कृपा दृष्टि बनी रहती है. माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वहां पर लक्ष्मी माता के साथ भगवान विष्णु की भी पूर्ण कृपा दृष्टि बनी रहती है.
तुलसी दल के बिना भगवान का प्रसाद यानी चरणामृत अधूरा है.सनातन हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार एक तांबे या पीतल के पात्र में कुछ जल मिलाने के बाद उसमें गंगाजल और तुलसी दल मिलाने से वह जल अमृत की तरह पवित्र और शुद्ध बन जाता है. भगवान विष्णु के पूर्ण अवतार श्रीकृष्ण को भी तुलसी अति प्रिय है, इसलिए भोग में, पंचामृत में भी गंगाजल और तुलसी दल मिलाया जाता है. यही वजह है कि तुलसी दल को चरणामृत में जरूर डालते हैं.
हिंदू धर्म में तुलसी को माता के समान माना गया है. सनातन धर्म में तुलसी की महिमा अपरंपार है. तुलसी दल को पूजा की थाली और प्रसाद में भी जगह दी जाती है. याद रखें तुलसी के पत्तों को कभी सूरज ढलने के बाद हाथ भी नहीं लगाना चाहिए तोड़ना तो बहुत दूर की बात है. वहीं अशुद्ध होने पर भी तुलसी के पेड़, घरौंदे या गमले से दूर ही रहना चाहिए. तुलसी माता को साफ सफाई बहुत पसंद है. अगर ठीक से इनका ध्यान न रखा जाए तो वो सूख जाती हैं.