आवंले के पेड़ का महत्व ऑवला वृक्ष लगाने की महिमा कार्तिक मास की नवमी या ऑवला नवमी क्यों मनाते है क्या है पूजन विधि और मन्त्र

स्कन्द पुराण के अनुसार "सृष्टि सृजन के क्रम में सबसे पहले इसी ‘धात्रीवृक्ष’ की उत्पत्ति हुई। सब वृक्षों में प्रथम उत्पन्न होने के कारण ही इसे ‘आदिरोह’ भी कहा गया है।"

आवंले के पेड़ का महत्व ऑवला वृक्ष लगाने की महिमा कार्तिक मास की नवमी या ऑवला नवमी क्यों मनाते है क्या है पूजन विधि और मन्त्र

आवंले के पेड़ का महत्व 


पौराणिक मान्यता के अनुसार कार्तिक शुक्ल पक्ष की नवमी से लेकर पूर्णिमा तक भगवान विष्णु आवंले के पेड़ पर निवास करते हैं। इस दिन आंवला पेड़ की पूजा-अर्चना कर दान पुण्य करने से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है अन्य दिनों की तुलना में नवमी पर किया गया दान पुण्य कई गुना अधिक लाभ दिलाता है एवं व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है।

सृष्टि सृजन के क्रम में उत्पन्न ऑवला वृक्ष के फल का जो नियमित सेवन करेगा वह त्रिदोषों- वात, पित्त एवं कफ जन्य रोगों से मुक्त  रहेगा। इस तिथि को प्राचीन काल से ही धात्री नवमी या फिर अक्षय नवमी के रूप में मनाया जाता है।


ऑवला नवमी क्यों मनाते है


मान्यता है कि कार्तिक मास की नवमी को आंवला के पेड़ के नीचे अमृत की वर्षा होती है। कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि में आंवले की पूजा को विशेष लाभदायक माना गया है।


क्या है पूजन विधि और मन्त्र 


प्रातः स्नान करके शुद्ध आत्मा से आंवले के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा मे बैठकर पूजन करना चाहीए। पूजन के बाद आंवले के वृक्ष की जड़ में दूध का अर्घ्य देना चाहीए। इसके बाद पेड़ के चारो ओर कच्चा धागा बांधना चाहिए। जगतजननी के स्वरूप देवी कूष्माण्डा के नीचे लिखे मंत्र का स्मरण करते हुए सूत वृक्ष के आस-पास लपेटें-


*दुर्गतिनाशिन त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।*
*जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्।।*

इसके बाद घी या कर्पूर दीप जलाकर वृक्ष की परिक्रमा व आरती यश व सुख की कामना से करें।


ऑवला नवमी में क्या जरूर करना चाहिए 


ऐसी मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को आंवले के पेड़ से अमृत की बूंदे गिरती है और यदि इस पेड़ के नीचे व्यक्ति भोजन करता है तो भोजन में अमृत के अंश आ जाता है। जिसके प्रभाव से मनुष्य रोगमुक्त होकर दीर्घायु बनता है।


आंवला के सेवन के लाभ 


पुराणाचार्य कहते हैं कि 
"आंवला त्योहारों पर खाये गरिष्ठ भोजन को पचाने और पति-पत्नी के मधुर सबंध बनाने वाली औषधि है।"
चरक संहिता के अनुसार कार्तिक शुक्ल नवमी के दिन ही महर्षि च्यवन को आंवला के सेवन से पुनर्नवा  होने का वरदान प्राप्त हुआ था.

यदि कोई आंवले का एक वृक्ष लगाता है तो उस व्यक्ति को एक राजसूय यज्ञ के बराबर फल मिलता है।

जो भी व्यक्ति अक्षय नवमी के दिन आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर भोजन करता है, उसकी  रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि होती है एवं दीर्घायु लाभ मिलता है।

स्कन्द पुराण के अनुसार


"सृष्टि सृजन के क्रम में सबसे पहले इसी ‘धात्रीवृक्ष’ की उत्पत्ति हुई। सब वृक्षों में प्रथम उत्पन्न होने के कारण ही इसे ‘आदिरोह’ भी कहा गया है।"

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