अंग्रेजी कैलेंडर के रोचक तथ्य क्यों १० महीनो का साल का साल हुआ करता था रात १२ बजे क्यों तारीख बदली जाती है
प्राचीन रोमन कैलेण्डर में मात्र 10 माह होते थे और वर्ष का शुभारम्भ 1 मार्च से होता था। बहुत समय बाद 713 ईस्वी पूर्व के करीब इसमें जनवरी तथा फरवरी माह जोड़े गए। सर्वप्रथम 153 ईस्वी पूर्व में 1 जनवरी को वर्ष का प्रथम दिन माना गया, दुनिया भर में प्रचलित ग्रेगेरियन कैलेंडर को पोप ग्रेगरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था।
अंग्रेजों के शासन ने संपूर्ण दुनिया पर एक नया कैलेंडर लाद कर रख दिया , जो कि बिल्कुल भी वैज्ञानिक नहीं है। दुनिया का लगभग प्रत्येक कैलेण्डर सर्दी के बाद बसंत ऋतू से ही प्रारम्भ होता है, यहां तक की ईस्वी सन वाला कैलेंडर, जो आजकल प्रचलन में है, वो भी मार्च से प्रारम्भ होता था।
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प्राचीन रोमन कैलेण्डर में मात्र 10 माह होते थे और वर्ष का शुभारम्भ 1 मार्च से होता था। बहुत समय बाद 713 ईस्वी पूर्व के करीब इसमें जनवरी तथा फरवरी माह जोड़े गए। सर्वप्रथम 153 ईस्वी पूर्व में 1 जनवरी को वर्ष का प्रथम दिन माना गया, दुनिया भर में प्रचलित ग्रेगेरियन कैलेंडर को पोप ग्रेगरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था। ग्रेगरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान भी किया था।
ईसाईयों का एक अन्य पंथ ईस्टर्न आर्थोडॉक्स चर्च रोमन कैलेंडर को मानता है। इस कैलेंडर के अनुसार नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। यही वजह है कि आर्थोडॉक्स चर्च को मानने वाले देशों रूस, जार्जिया, येरुशलम और सर्बिया में नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। रोम का सबसे पुराना कैलेंडर वहां के राजा न्यूमा पोंपिलियस के समय का माना जाता है। इस कैलेंडर में बारहवां महीना फरवरी था। इस कैलेंडर में कई बार सुधार किए गए पहली बार इसमें सुधार पोप ग्रेगरी तेरहवें के काल में 2 मार्च, 1582 में उनके आदेश पर हुआ।
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चूंकि यह पोप ग्रेगरी ने सुधार कराया था इसलिए इसका नाम ग्रेगेरियन कैलेंडर रखा गया। फिर सन 1752 में इसे पुन: संशोधित किया गया तब सितंबर 1752 में 2 तारीख के बाद सीधे 14 तारीख का प्रावधान कर संतुलित किया गया। अर्थात सितंबर 1752 में मात्र 19 दिन ही थे। तब से ही इसके सुधरे रूप को अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिली। बहुत प्राचीन समय से ही मार्च में नए वर्ष के प्रारंभ होने का दुनियाभर में प्रचलन रहा है। मार्च में आज भी दुनियाभर में बही खाते बदलने, खाताबंदी करने या कंपनियों में मार्च एंडिंग के कार्य निपटाने का प्रचलन जारी है।
अब आते है है फाइनेंसियल साल की शुरुवात पर
क्यों यह १ अप्रैल से शुरू होता है जबकि पाश्चात्य संस्कृति १ जनवरी को नया साल मानते आ रहे है
सतहवी शताब्दी के आरम्भ में जब अंग्रेज भारत पहुंचे तो यहाँ की प्रचिलित सभ्यता संस्कृति और मान्यताओं को देख कर चकित थे जल्द ही अंग्रजो ने जान लिया की यही संस्कृति और मान्यताओं के बलबूते भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था उन्होंने देखा की चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा से भारतीयों का नया साल शुरू होता है गड़ना करने पर यह मार्च अप्रैल की बीच आता है तो उन्होंने अपनी सुविधा के लिए इसे १ अप्रैल से मान लिया.
जहा अंगेज गए वह भी उन्होंने इसे प्रचिलित कर दिया जिसे लगभग पूरी दुनिया आज भी मानती आ रही है क्या आपको यह तर्क संगत नहीं लगता कमेंट करके जरूर बताये
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अब जानिए रात १२ बजे दिन की तारीख बदलने के बारे में
अंग्रेज़ अपना तारीख या दिन 12 बजे रात से बदल देते है जबकि दिन की शुरुआत सूर्योदय से होती है
तो 12 बजे रात से नया दिन का क्या तुक बनता है तुक बनता है भारत में नया दिन सुबह से गिना जाता है, सूर्योदय से करीब दो-ढाई घंटे पहले के समय को ब्रह्म-मुहूर्त्त की बेला कही जाती है और यहाँ से नए दिन की शुरुआत होती है यानि की करीब ४:३० के आस-पास और इस समय इंग्लैंड में समय रात के 12 बजे के आस-पास का होता है।
चूँकि उस समय भारत इंग्लैंड का उपनिवेश था अंग्रेजो का अधिपत्य देश भर में था और उनके पूरे देश की आय का सबसे बड़ा स्रोत भी हमारा देश था इसी वजह से वो अपना समय यहाँ से मिला कर रखते थे अब आगे बताने की जरूरत नहीं है आप खुद ही समझ गए होंगे की क्यों रात १२ बजे के बाद तारिख बदलने का प्रचलन शुरू हुवा.
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