Janmashtami 2022 Special : क्या आप जानते है क्यों श्रीकृष्ण की छाती पर बनाते हैं पैर का निशान
लड्डू गोपाल की प्रतिमा आप सभी ने रखी होगी। अगर आपने कभी गौर किया है, तो आप देखेंगे कि लड्डू गोपाल की छाती पर पग चिह्न बने हैं। आइए जानते हैं लड्डू गोपल के सीने पर पैर के निशान का रहस्य क्या है।
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद माह के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। तब से यह तिथि कान्हा के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाने लगी। श्रीकृष्ण भगवान विष्णु के आठवें अवतार कर रूप में जाने जाते हैं। भगवान श्री कृष्ण के भक्त उन्हें बांके बिहारी, श्याम, मुरारी आदि नामों से पुकारते हैं। तो वहीं भगवान श्री कृष्ण के बाल रूप को लड्डू गोपाल के रूप में पूजते हैं। मान्यता है कि जो भी भक्त भगवान श्री कृष्ण की सच्चे मन से आराधना करता है, भगवान श्री कृष्ण उसपर सदैव अपनी कृपा दृष्टि बनाए रखते हैं। श्री कृष्ण को हम कई नामों से जानते हैं जैसे बाल गोपाल, बांके बिहारी, श्याम, मुरारी आदि। कान्हा के बाल रूप को लड्डू गोपाल के नाम से भी जानते हैं। श्री कृष्ण को जन्माष्टमी के दिन लड्डू गोपाल के रूप में पूजा जाता है। उनका जन्म कराकर पूरे विधि-विधान से उनकी आराधना की जाती है। लड्डू गोपाल की प्रतिमा आप सभी ने रखी होगी। अगर आपने कभी गौर किया है, तो आप देखेंगे कि लड्डू गोपाल की छाती पर पग चिह्न बने हैं। आइए जानते हैं लड्डू गोपल के सीने पर पैर के निशान का रहस्य क्या है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार जब ऋषि मुनियों के मध्य ये विवाद जन्मा कि सनातन धर्म के तीन प्रमुख देवताओं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में से कौन सर्वश्रेष्ठ है, तब ऋषियों में प्रमुख भृगु ऋषि को इस बात का पता लगाने का जिम्मा सौंपा गया कि आप बताएं कि त्रिदेवों में सबसे श्रेष्ठ कौन है?
जिसके बाद ऋषि भृगु सबसे पहले ब्रह्मा जी की परीक्षा लेने ब्रह्मलोक पहुंचे, जहां उन्होंने ब्रह्मा जी से कहा कि तुमने मेरा आदर सत्कार ना करके मेरा अनादर किया है, और ऋषि भृगु ब्रह्मा जी पर क्रोधित होने लगे। जिस पर ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम अपने पिता से आदर करवाना चाहते हो, तुम कितने भी बड़े विद्वान क्यों ना हो जाओ?
तुम्हें बड़ों का अपमान नहीं करना चाहिए। और ब्रह्मा जी ने ऋषि भृगु के प्रति अपना क्रोध व्यक्त करना आरंभ कर दिया। जिस पर ऋषि भृगु ने ब्रह्मा जी से माफी मांगी और कहा कि हे प्रभु! मैं केवल ये देखना चाह रहा था कि आपको क्रोध आता है या नहीं!
ऐसा कहकर, इसके बाद भृगु ऋषि कैलाश पर्वत गए और वहां शिव शंभू की परीक्षा लेना शुरू किया। नंदी महाराज ने कहा कि महादेव अभी समाधि में लीन हैं। लेकिन ऋषिवर नहीं मानें और समाधि में लीन महादेव के पास पहुंच गए और कहने लगे, कि हे देवो के देव महादेव आपके द्वार तो हमेशा ऋषियों के लिए खुले रहते हैं, फिर भी आपने मेरा स्वागत नहीं किया? शिव शंभू यह सुनकर क्रोधित हो गए और उन्होंने ऋषि भृगु को मारने के लिए शस्त्र उठा लिए। लेकिन तभी देवी पार्वती वहां आ गई और उन्होंने महादेव से ऋषि भृगु के प्राण बचाने के लिए प्रार्थना की। इस तरह से ऋषि भृगु जान बचाकर कैलाश से वैकुण्ठ लोक की ओर चल दिए।
दोनों जगह से परीक्षा लेने के बाद भृगु ऋषि श्रीविष्णु के पास पहुंचे। श्री विष्णु घोर निद्रा में थे। ऋषि भृगु को लगा कि भगवान विष्णु सोने का नाटक कर रहे हैं और उन्होंने अपना पैर भगवान विष्णु की छाती पर रख दिया। पर इस बार उन्हें विपरीत प्रतिक्रिया देखने को मिली। श्री हरि विष्णु क्रोधित न होकर भृगु ऋषि से पूछते हैं कि "कहीं आपके पैर में मेरी छाती से चोट तो नहीं लगी?" श्री हरि के इस व्यवहार से प्रसन्न होकर ऋषि भृगु ने उन्हें त्रिदेवों में सबसे श्रेष्ठ घोषित कर दिया। कहते है कि जब भृगु जी ने विष्णु जी की छाती पर लात लगायी तो विष्णु जी ने उन्हें उसी समय गुरू धारण कर लिया। यह भी कहा कि, हे महर्षि ! भृगु जी आपका यह पांव का चिन्ह सदा मेरे छाती पर रहेगा। इसी कारण चाहे वह लड्डू गोपाल जी हो, तिरुपति वेंकटेशवर बाला जी हों या श्री जगन्नाथ पुरी के जगन्नाथ जी या फिर विष्णु जी का कोई भी अवतार ही क्यों न हो। श्री हरि विष्णु ने अगर किसी को गुरु धारण किया है तो वह एकमात्र हैं महर्षि भृगु जी महाराज।