जानिए बारिश आखिर कैसे बाढ़ में बदल जाती है? जानिए ऐसा क्या हो जाता है कि इससे मच जाती है तबाही
कैसे बारिश, बाढ़ में बदल जाती है। वो बाढ़ जिसके आगे कुछ भी नहीं टिकता। लोगों की जान, घर, पेड़, सड़कें, कार एक पल में सब खत्म हो जाता है। आखिर पानी इतना ताकतवर कब और कैसे बन जाता है।
जुलाई-अगस्त में बारिश-बाढ़ ने 5 देशों- भारत, चीन, तुर्किये, जापान और अमेरिका के कई शहरों में तबाही ला दी। हमने सुनते हैं कि पानी शांत होता है, लेकिन फिर ऐसा क्या हो जाता है कि इससे तबाही मच जाती है।
कैसे बारिश, बाढ़ में बदल जाती है। वो बाढ़ जिसके आगे कुछ भी नहीं टिकता। लोगों की जान, घर, पेड़, सड़कें, कार एक पल में सब खत्म हो जाता है। आखिर पानी इतना ताकतवर कब और कैसे बन जाता है।
DW की रिपोर्ट के मुताबिक, जर्मन रिसर्च सेंटर फॉर जियोसाइंसेज के एक पर्यावरण शोधकर्ता माइकल डाइट्ज ने बाढ़ की प्रकृति के बारे में लिखा है। इसके जरिए आइए ऊपर दिए गए सवालों के जवाब जानें...
डाइट्ज के मुताबिक, बहता हुआ पानी सबसे ज्यादा खतरनाक होता है। एक घन मीटर (1 क्यूबिक मीटर) पानी का वजन एक मीट्रिक टन होता है। यानी पानी बहुत ही भारी होता है। जब पानी बहता है तो ये रास्ते में आने वाली किसी भी चीज पर गहरा दबाव बनाता है। इसमें बहाव के साथ तबाही लाने की क्षमता होती है।
हालांकि जब हम तबाही की बात करते हैं तो सिर्फ पानी को अकाउंट में नहीं लिया जाता। पानी के साथ गीली मिट्टी भी होती है, जो दिखने में स्थिर होती है पर पानी के साथ आसानी से बह जाती है।
पानी के साथ गीली मिट्टी भी आसानी से बह जाती है और भयानक तबाही ला सकती है।
जर्मन वेदर सर्विस का कहना है कि भारी बारिश कम अनुमानित पर्यावरणीय जोखिम है, मूसलाधार बारिश की भविष्यवाणी करना मुश्किल है और ज्यादातर इलाकों में बारिश होने का पता लगाना नामुमकिन है। मौसम वैज्ञानिक ये तो बता सकते हैं कि बारिश होगी, लेकिन उनके लिए ये बताना मुश्किल है कि किस इलाके में कितनी बारिश होगी।
डाइट्ज के मुताबिक, भारी बारिश से जमीन पर पानी का लेवल बढ़ता जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि जमीन पर मौजूद मिट्टी एक लिमिट तक ही पानी को एब्जॉर्ब कर पाती है, जब ये लिमिट खत्म हो जाती है, तो पानी जमीन के अंदर एब्जॉर्ब न होते हुए जमीन पर ही रहता है।
पानी को एब्जॉर्ब करने में अलग-अलग तरह की मिट्टी का भी अहम रोल होता है, क्योंकि अलग-अलग तरह की मिट्टी की वॉटर एब्जॉर्बिंग, स्टोरेज और पानी छोड़ने की कैपेसिटी अलग होती है। यहां मिट्टी के कणों के पोर साइज (छिद्र आकार) पर ध्यान देना जरूरी हो जाता है।
इन मिट्टी के कणों को 'कोलाइड' कहा जाता है। इनका डायमीटर (व्यास) 2 माइक्रोमीटर होता है। ये इतने छोटे होते हैं कि इन्हें बिना माइक्रोस्कोप के देखा नहीं जा सकता। बड़ी मात्रा में ये कण एक ऐसा सरफेस एरिया बनाते हैं जिससे पानी के मॉलीक्यूल (अणु) जुड़ जाते हैं।
कोलाइड सबसे ज्यादा मात्रा में चिकनी और दोमट मिट्टी (एक तरह की मिट्टी) में पाए जाते हैं। पोर साइज छोटा होने के कारण पानी बह नहीं पाता। यही वजह है कि चिकनी और दोमट मिट्टी पानी को आसानी से एब्जॉर्ब कर लेती है।
वहीं, जिस इलाके की मिट्टी में रेत ज्यादा होती है, यानी रेत भरी मिट्टी में कोलाइड कम होते हैं, इनमें ग्रेन्स होते हैं, इनके पोर साइज में बड़े होते हैं। इनमें पानी ठहरता नहीं है। इस कारण रेत भरी मिट्टी पानी को एब्जॉर्ब नहीं कर पाती है।
डाइट्ज ने कहा बारिश से पहले मिट्टी की स्थिति भी बाढ़ आने का अहम फैक्टर है। काफी समय तक सूखे पड़ने के बाद जब बारिश होती है तो मिट्टी एकदम से पानी को सोख (एब्जॉर्ब) नहीं पाती है। ऐसी स्थिति को वाटर रिपेलेंसी कहा जाता है। वाटर रिपेलेंसी को दूसरे शब्दों में ऐसे समझें- ऐसे स्थिति जब पानी एब्जॉर्ब होने की जगह जमीन पर बहता है।
ये पानी जमीन से बहते हुए नदियों में पहुंच जाता है। नदियों का जलस्तर बढ़ जाता है। डाइट्ज के मुताबिक, एक बार पानी नदियों तक पहुंच जाता है तो पानी की स्पीड बेहद तेज हो जाती है। इस स्पीड से जब पानी ढलान पर बहता है तो तबाही मचाने की आशंका सबसे ज्यादा होती है। वहीं, नदियों की गहराई भी पानी को ताकतवर बनाती है।