जानिए बेहद दिलचस्प वजह: आदित्य-L1 के वैज्ञानिकों को परफ्यूम लगाने पर क्यों थी मनाही? 

इसरो ने आदित्य-L1 को सफलतापूर्वक कक्षा स्थापित कर दिया गया। इसरो के आदित्य-एल1 (Aditya-L1) मिशन से परफ्यूम का एक रोचक कनेक्शन सामने आया है। 

जानिए बेहद दिलचस्प वजह: आदित्य-L1 के वैज्ञानिकों को परफ्यूम लगाने पर क्यों थी मनाही? 

इसरो ने चंद्रयान के बाद अपने पहले सोलर मिशन को सफलतापूर्वक लॉन्च किया। इसरो ने आदित्य-L1 को सफलतापूर्वक कक्षा स्थापित कर दिया गया। इसरो के आदित्य-एल1 (Aditya-L1) मिशन से परफ्यूम का एक रोचक कनेक्शन सामने आया है। 

इस सोलर मिशन आदित्य-L1 के खास पेलोड और परफ्यूम का 36 का आंकड़ा था। इसकी वजह थी स्प्रे और परफ्यूम के गैस पार्टिकल। स्थिति यह थी कि मिशन से जुड़े वैज्ञानिकों और इंजीनियर्स को परफ्यूम का यूज करने की अघोषित रूप से मनाही थी। 

इसरो के अनुसार, आदित्य-एल1 मिशन का मुख्य पेलोड (उपकरण) ‘विजिबल लाइन एमिशन कोरोनाग्राफ’ (VELC) था। इसे भारतीय खगोल भौतिकी संस्थान, बेंगलुरु की तरफ से डेवलप किया गया था।

खास बात है कि वीईएलसी पेलोड को साफ-सफाई की वजह से हर तरह के परफ्यूम और स्प्रे से दूर रखना था। इस पेलोड से जुड़ी गतिविधियां बेंगलुरु के पास होसकोटे स्थित सेंटर में चल रही थीं। 

यहां अत्याधुनिक कंपन और थर्मोटेक सुविधा थी। यहां कंपोनेट लेवल का वाइब्रेशन किया गया था। यह डिटेक्टरों और ऑप्टिकल तत्वों को एकीकृत करने में एक महत्वपूर्ण कदम था। इस एकीकरण के बाद, प्रिस्टीन क्लीन रूम में एक नाजुक कैलिब्रेशन सामने आया। 

यहां जहां टीम ने, भविष्य के खोजकर्ताओं से मिलते-जुलते पूर्ण-सूट में, इलेक्ट्रोस्टैटिक डिस्चार्ज और कंटामिनेशन से बचाव किया। ऐसे में यहां परफ्यूम पर रोक थी। यहां हर एक पेंच को अल्ट्रासोनिक सफाई से गुजरना पड़ता था।

पेलोड से जुड़े ये सूट सेंसर और ऑप्टिक्स की सुरक्षा करने वाली ढाल थे। वहीं, क्लीनरूम एक 'सेंक्चुरी' था। वीईएलसी तकनीकी टीम के प्रमुख नागाबुशाना एस ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि क्लीनरूम को अस्पताल के आईसीयू से 1 लाख गुना ज्यादा साफ रखना पड़ता था। 

उन्होंने कहा कि हमने यह सुनिश्चित करने के लिए HEPA (उच्च दक्षता वाले पार्टिकुलेट एयर) फिल्टर, आइसोप्रोपिल अल्कोहल (99% केंद्रित) और कठोर प्रोटोकॉल का उपयोग किया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि कोई विदेशी कण व्यवधान पैदा न करें। 

वीईएलसी तकनीकी टीम के सदस्य, आईआईए के सनल कृष्णा ने कहा कि एक कण के डिस्चार्ज से कई दिनों की मेहनत बर्बाद हो सकती है। वैज्ञानिकों ने छह-छह घंटे की पाली में काम किया। यहां तक कि मेडिसिनल स्प्रे का उपयोग करने से भी परहेज किया।

बता दे कि भारत से पहले दुनिया के 3 देश सूरज पर मिशन भेज चुके हैं। मिशन भेजने वाले देश अमेरिका, जर्मनी और यूरोपियन स्पेस एजेंसी हैं। इन्होंने अब तक 22 बार सूरज तक पहुंच बनाने की कोशिश की है, लेकिन महज एक बार ही वहां के सैंपल जुटा पाने में सफलता मिली है।

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (ISRO) को उम्मीद है कि चंद्रयान-3 की तरह Aditya-L1 मिशन भी अपने मकसद में पूरी तरह कामयाब होगा। चुनौतियों के बावजूद, वैज्ञानिकों का मानना है कि आदित्य एल-1 मिशन में अपार संभावनाएं हैं। हालांकि आदित्य एल-1 मिशन की सफलता का आकलन करने के लिए लगभग चार महीने इंतजार करना होगा।