जानिए क्यों बाबा गोरखनाथ को लगाया जाता है खिचड़ी का भोग, गोरखपुर की गोरख पीठ से जुड़ी पौराणिक कथा

मकर संक्रांति के मौके पर गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी पर्व काफी धूमधाम से मनाया जाता है। संक्रांति के पावन मौके पर बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाई जाती है। मकर संक्रांति के दिन बाबा गोरखनाथ को सबसे पहले गोरक्षपीठ की तरफ से पीठाधीश्वर खिचड़ी चढ़ाते हैं। इसके बाद नेपाल के राज परिवार की ओर से आई खिचड़ी का भोग लगाया जाता है।

जानिए क्यों बाबा गोरखनाथ को लगाया जाता है खिचड़ी का भोग, गोरखपुर की गोरख पीठ से जुड़ी पौराणिक कथा

मकर संक्रांति को हर राज्य में अलग-अलग तरह से मनाया जाता है। इसमें उत्तर प्रदेश के गोरखपुर का 'खिचड़ी मेला' काफी प्रसिद्ध है। यहां मकर संक्रांति के मौके पर गोरखनाथ मंदिर में खिचड़ी पर्व काफी धूमधाम से मनाया जाता है। संक्रांति के पावन मौके पर बाबा गोरखनाथ को खिचड़ी चढ़ाई जाती है। इस परंपरा को लेकर शहरवासियों का अटूट विश्वास जुड़ा हुआ है।

गोरखपुर में खिचड़ी मेले के लिए दूर-दराज से लोग आते हैं। इतना ही नहीं सीमा पार यानी नेपाल से भी श्रद्धालुओं की टोली इस मेले का हिस्सा बनने आती है। आपको यहां बता दें कि बाबा गोरखनाथ के भोग के लिए नेपाल के राज परिवार की तरफ से खिचड़ी आती है। मकर संक्रांति के दिन बाबा गोरखनाथ को सबसे पहले गोरक्षपीठ की तरफ से पीठाधीश्वर खिचड़ी चढ़ाते हैं। इसके बाद  नेपाल के राज परिवार की ओर से आई खिचड़ी का भोग लगाया जाता है।

धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक, एक बार गुरु गोरखनाथ कांगड़ा में ज्वाला देवी के दरबार में गए और जब देवी ने उन्हें भोजन के लिए कहा तो गुरु गोरखनाथ बोले कि वे केवल भिक्षा में मिले चावल-दाल ही ग्रहण करेंगे। इसके बाद देवी ने गुरु की इच्छा का सम्मान किया और कहा कि आप के द्वारा लाए गए चावल-दाल से ही भोजन कराऊंगी। उधर, उन्होंने भोजन बनाने के लिए आग पर पात्र में पानी चढ़ा दिया। वहां से गुरु भिक्षा मांगते हुए गोरखपुर चले आए।

मान्यता के अनुसार, बाबा ने राप्ती व रोहिणी नदी के संगम पर एक स्थान का चयनकर अपना अक्षय पात्र रख दिया और साधना में लीन हो गए। उसी दौरान जब खिचड़ी यानी मकर संक्रांति का पर्व आया तो लोगों ने एक योगी का भिक्षा पात्र देखा तो उसमें चावल और दाल डालने लगे। जब काफी मात्रा में अन्न डालने के बाद भी पात्र नहीं भरा तो लोगों ने इसे योगी का चमत्कार माना और उनके सामने श्रद्धा से सिर झुकाने लगे। कहते हैं कि तभी से गुरु की इस तपोस्थली पर खिचड़ी पर चावल-दाल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई, जो आज तक जारी है। वहीं ज्वाला देवी मंदिर में आज भी बाबा गोरक्षनाथ के इंतजार में पानी खौल रहा है। 

मंदिर परिसर में मकर संक्रांति से शुरू खिचड़ी मेला करीब एक महीने तक चलता है। इस दौरान पड़ने वाले हर रविवार और मंगलवार का अपना महत्व है। इन दिनों और वहां पर भारी संख्या में श्रद्धालु आते हैं। चूंकि यह उत्तर भारत के बड़े धार्मिक आयोजनों में से एक है। इसलिए खिचड़ी मेले में पूरे उत्तर भारत से लाखों की संख्या में लोग आते हैं। इसमें से अधिकांश नेपाल-बिहार व पूर्वांचल के दूर-दराज के इलाकों से लाखों श्रद्धालु खिचड़ी चढ़ाने आते हैं। कुछ बाबा से मांगी मन्नत पूरी होने पर अपनी आस्था जताने आते हैं और कुछ मन्नत मांगने। यह सिलसिला सदियों से जारी है।