मौलाना खालिद रशीद बोले- UCC की मुल्क में जरूरत नहीं, 1करोड़ मुस्लिम दर्ज कराएंगे UCC का विरोध
मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने अपनी वेबसाइट पर एक लिंक व क्यूआर कोड दिया है जिसके माध्यम से जीमेल के जरिए विधि आयोग तक विरोध दर्ज करा सकते हैं। समान नागरिक संहिता को लेकर मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की बुधवार को करीब तीन घंटे आनलाइन बैठक चली।
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने एक बार फिर समान नागरिक संहिता का बड़े पैमाने पर विरोध करने का निर्णय लिया है। बोर्ड ने एक पत्र जारी कर मुस्लिमों से इसके खिलाफ व्यापक विरोध करने का आह्वान किया है। बोर्ड ने तय किया है कि देश भर से करीब एक करोड़ मुस्लिम विधि आयोग को पत्र लिखकर समान नागरिक संहिता पर अपना कड़ा विरोध दर्ज कराएंगे।
मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने अपनी वेबसाइट पर एक लिंक व क्यूआर कोड दिया है जिसके माध्यम से जीमेल के जरिए विधि आयोग तक विरोध दर्ज करा सकते हैं। समान नागरिक संहिता को लेकर मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड की बुधवार को करीब तीन घंटे आनलाइन बैठक चली।
इसके बाद आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने कहा कि भाजपा सरकार धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता पर चोट पहुंचा रही है। अलग-अलग धर्मों और संस्कृतियों के निजी मामलों में उनकी आजादी छीनने का प्रयास हो रहा है। विरोध दर्ज कराने के लिए क्यूआर व लिंक दिया गया है। इसके जरिए सीधे जीमेल में पहुंच जाएंगे। इसमें सारा विवरण व विरोध का मसौदा आ जाएगा, केवल सेंड का बटन दबाना होगा।
बैठक के बाद बोर्ड के सदस्य मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि सभी ने समान नागरिक संहिता पर कड़ा विरोध दर्ज कराने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि यूसीसी की मुल्क में कोई जरूरत नहीं है।
इसका मसला सिर्फ मुस्लिम का ही नहीं बल्कि कई और धर्मों से भी जुड़ा है। पांच वर्ष पहले भी इस पर चर्चा हुई थी। तब विधि आयोग ने कहा था कि देश को इसकी जरूरत नहीं है। इसके बावजूद फिर विधि आयोग ने यूसीसी पर लोगों की राय मांगी है।
आल इंडिया मुस्लिम पर्सनल ला बोर्ड ने विधि आयोग को समान नागरिक संहिता की खामियों को लेकर करीब 100 पेज का पत्र भेज दिया है। इसमें कहा गया है कि देश में अलग-अलग धर्म और संस्कृति के लोग रहते हैं।
अलग-अलग राज्यों में कानून अलग-अलग हैं। हिंदू धर्म में ही उत्तर भारत और दक्षिण भारत में लोगों की शादी करने का तरीका अलग-अलग है। जनजातियों के अलावा ईसाई, जैन और गैर-धार्मिक लोगों के भी अपने-अपने कानून हैं।
जहां तक मुस्लिम पर्सनल ला का सवाल है, यह मुस्लिमों द्वारा नहीं बनाया गया है, बल्कि इसमें कुरान, हदीस से लिए गए शरिया कानून शामिल हैं। कोई भी मुस्लिम इसे बदल नहीं सकता है।
इन कानूनों में विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेना या न लेना आदि शामिल हैं। देश में अलग-अलग धर्म, सभ्यता और संस्कृति होने के कारण समान नागरिक संहिता लागू करना किसी भी तरह से उचित नहीं है। बोर्ड ने आदिवासियों और अल्पसंख्यकों को इसके दायरे से बाहर रखने की मांग की है।