शाहजहांपुर में ढकी जा रहीं मस्जिदें, निकलेंगे ‘लाट साहब’, जानिए अंग्रेजों के विरोध की अनोखी परंपरा

हर साल होली से पहले स्थानीय लोग मिलकर एक ‘लाट साहब’ या ‘नवाब’ चुनते हैं. एक दिन पहले से ही उनकी खातिरदारी शुरू हो जाती है. उन्हें नशा कराया जाता है. होली के दिन जुलूस पहले शहर कोतवाली पहुंचता है, जहां उसे सलामी दी जाती है. मुस्लिम समाज ने इस परंपरा के खिलाफ जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा है. मौलाना कासिम रजा खां के मुताबिक धार्मिक स्थलों को ढंकने की परंपरा हाल में शुरू हुई है. यह गलत है.

शाहजहांपुर में ढकी जा रहीं मस्जिदें, निकलेंगे ‘लाट साहब’, जानिए अंग्रेजों के विरोध की अनोखी परंपरा

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर और संभल जिले में होली पर्व को देखते हुए मस्जिदों और मदरसों को ढंकने का काम शुरू हो गया है. शाहजहांपुर में 67 मस्जिद और मजारों के अलावा संभल में आठ मस्जिदों को ढंका जा रहा है. यह कवायद प्रस्तावित लाट साहब के जुलूस को देखते हुए शुरू किया गया है. प्रशासन को आशंका है कि इस जुलूश के दौरान उपद्रवी तत्व मस्जिदों पर रंग फेंक सकते हैं. इससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है.
बता दे शाहजहांपुर में होली के दिन लाट साहब का जुलूस निकाला जाता है. इसको लेकर शहर की मस्जिद-मजारों को तिरपाल से ढका जा रहा है.  जिससे उनपर होली का रंग ना पड़े. कुछ और शहरों में भी मस्जिदों को पन्नी से कवर करने की खबरें आ रही हैं. दरअसल, यहां लाट साहब मतलब अंग्रेजों के शासन के क्रूर अफसर, जिनके विरोध में हर साल होली में ये जुलूस निकाला जाता है. अब सवाल है कि ये कौन-से लाट साहब हैं, होली पर जिनका जुलूस निकाला जाता है, ये कैसी परंपरा है और कब से चली आ रही है? 
लाट साहब यानी ब्रिटिश शासन के क्रूर अफसर. होली पर जुलूस निकाल कर उन्हीं का विरोध किया जाता है. ये लाट साहब, होली के नवाब होते हैं. जूतों की माला पहनाई जाती है, पहले शराब पिलाई जाती है और फिर गुलाल के साथ उन पर चप्पल भी बरसाई जाती है. बैलगाड़ी पर बिठाकर पूरा शहर घुमाया जाता है.
शाहजहांपुर की बात करें तो हर साल होली से पहले स्थानीय लोग मिलकर एक ‘लाट साहब’ या ‘नवाब’ चुनते हैं. एक दिन पहले से ही उनकी खातिरदारी शुरू हो जाती है. उन्हें नशा कराया जाता है. होली के दिन जुलूस पहले शहर कोतवाली पहुंचता है, जहां उसे सलामी दी जाती है. फिर ये जुलूस शहर के जेल रोड से थाना सदर बाजार और टाउन हॉल मंदिर होते हुए गुजरता है. लाट साहब किसे चुना जाएगा और वो किस जाति-धर्म का होगा, इसे गुप्त रखा जाता है, ताकि किसी समुदाय की भावनाएं आहत न हों.
शाहजहांपुर में एक और लाट साहब होते हैं. बड़े लाट साहब के अलावा छोटे लाट साहब का भी जुलूस निकाला जाता है. इस जुलूस के निकलने का अलग रूट होता है. ये मिश्रित आबादी के बीच से निकलता है.  प्रशासन को यहां सुरक्षा के खास इंतजाम करने पड़ते हैं.  इसलिए यहां पर ड्रोन कैमरे के जरिए जुलूस की निगरानी की जाती है. लोग इसे जश्न के तौर पर मनाते हैं. हर साल हजारों लोग इस जश्न में शामिल होते हैं. हालांकि अलग-अलग समुदायों के कुछ लोग इस परंपरा का विरोध भी करते रहे हैं.
मुस्लिम धर्मगुरुओं ने आपत्ति जताई है. कहा कि इतना ही डर है तो सुरक्षा बढ़ाकर उपद्रवी तत्वों पर नकेल कसी जा सकती है. बता दें कि शाहजहांपुर में होली के मौके पर लाट साहब के दो जुलूस निकलते हैं. इसमें छोटे लाट साहब का जुलूश सराय काईयां मोहल्ले से शुरू होकर शहर के कई क्षेत्रों से होते हुए वापस सरायकाईयां आता है और पुलिस चौकी पर इसका समापन किया जाता है.
प्रशासनिक अधिकारियों के मुताबिक जुलूश और रंग एकादशी के दौरान आशंका है कि कोई उपद्रवी तत्व मस्जिद या मजारों पर रंग ना फेंक दे. इससे सांप्रदायिक तनाव बढ़ सकता है. ऐसे प्रशासन ने एहतियातन सभी मस्जिदों और मदरसों को कवर करा दिया है. जबकि शाहजहांपुर शहर के इमाम हुजूर अहमद मंजरी ने इसे गलत बताया. उन्होंने कहा कि मस्जिद और मजारों को ढकने से भय का माहौल बनता है. उन्होंने बताया कि पहली बार चार पांच साल पहले जुलूश के दौरान धार्मिक स्थलों को ढंका गया था. लेकिन अब प्रशासन ने इसे परंपरा बना दिया है.
मुस्लिम समाज ने इस परंपरा के खिलाफ जिला प्रशासन को ज्ञापन सौंपा है. मौलाना कासिम रजा खां के मुताबिक धार्मिक स्थलों को ढंकने की परंपरा हाल में शुरू हुई है. यह गलत है. इससे दुनिया में गलत मैसेज जाता है. उन्होंने कहा कि इसे रोकने के लिए बीते सप्ताह उन्होंने डीएम को ज्ञापन दिया था. लेकिन प्रशासन का ध्यान इधर है ही नहीं. उधर, सिटी मजिस्ट्रेट शाहजहांपुर आशीष कुमार सिंह ने बताया कि यह कवायद एहतियातन है. प्रयास किया जा रहा है कि धार्मिक कार्यक्रम भी शांति पूर्वक संपन्न हो जाए और किसी की धार्मिक भावनाओं को कोई ठेस भी न लगे.