पूरी जानकारी: नया संसद भवन रचेगा इतिहास, 'सेंगोल' स्थापित करेंगे पीएम मोदी, चोल वंश से लेकर नेहरू तक जुड़ा है कनेक्‍शन

गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि नए संसद भवन का उद्धाटन 28 मई को किया जाएगा. ये दिन बेहद खास होने जा रहा है, क्‍योंकि इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पवित्र सेंगेाल को स्‍वीकार करेंगे, जो हमारी सभ्‍यता से जुड़ी एक अहम वस्‍तु है. अगस्त 1947 को रात के 11.45 बजे यानी आजादी मिलने से 15 मिनट पहले थिरुवदुथुरै अधीनम मठ के राजगुरु ने राजदंड माउंटबेटन को दिया. बकायदा पूजा के बाद राजदंड सेंगोल को पहले पीएम नेहरू को भेंट किया गया था.

पूरी जानकारी: नया संसद भवन रचेगा इतिहास, 'सेंगोल' स्थापित करेंगे पीएम मोदी, चोल वंश से लेकर नेहरू तक जुड़ा है कनेक्‍शन

भारत के नए संसद भवन का उद्घाटन रविवार को किया जाएगा. इस खास मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐतिहासिक रूप से अहम 'सेंगोल' की स्थापना करेंगे. इसे एक निष्पक्ष और न्यायपूर्ण शासन का प्रतीक माना जाता है. सेंगोल को राजा महाराजाओं के समय से सत्ता हस्तांतरण के वक्त इस्तेमाल किया जाता था. इसका भारत के एक प्रतापी राजा से खास कनेक्शन है. ये वही राजा हैं, जिन्होंने एशिया की सबसे बड़ी नौसेना बनाई थी.

एक प्रेस कॉन्‍फ्रेंस के दौरान अमित शाह ने बताया कि नया संसद भवन प्रधानमंत्री की दूरदर्शिता का उदाहरण है. सरकार ने नये संसद भवन के उद्घाटन समारोह में शामिल होने के लिए सभी राजनीतिक दलों को आमंत्रित किया है.    

गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि नए संसद भवन का उद्धाटन 28 मई को किया जाएगा. ये दिन बेहद खास होने जा रहा है, क्‍योंकि इस दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पवित्र सेंगेाल को स्‍वीकार करेंगे, जो हमारी सभ्‍यता से जुड़ी एक अहम वस्‍तु है. अंग्रेजों से सत्ता हस्तांतरण के प्रतीक ‘ऐतिहासिक सेंगोल' को नए संसद भवन में स्थापित किया जाएगा.  

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इसे लेकर कहा है, 'इस पवित्र सेंगोल को किसी संग्रहालय में रखना अनुचित है. सेंगोल की स्थापना के लिए संसद भवन से अधिक उपयुक्त, पवित्र और उचित स्थान कोई हो ही नहीं सकता. इसलिए जब संसद भवन देश को समर्पण होगा, उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी जी बड़ी विनम्रता के साथ तमिलनाडु से आए, अधीनम से सेंगोल को स्वीकार करेंगे.'

बता दे कि कई राजनीतिक दलों ने नए संसद भवन के उद्घाटन समारोह का बहिष्कार करने का फैसला किया है. इसमें राष्ट्रीय जनता दल यानी आरजेडी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) और समाजवादी पार्टी (सपा) का नाम भी जुड़ गया है. विपक्ष को मात देने के लिए मोदी सरकार ने नया दांव चला है. मोदी सरकार ने भारत के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का नाम आगे बढ़ा कर कांग्रेस को घेरने की कोशिश की है. इसके केंद्र में हैं 'सेंगोल'. 

सेंगोल शब्द तमिल शब्द सेम्मई' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'नीतिपरायणता'. सेंगोल एक राजदंड होता है. चांदी के सेंगोल पर सोने की परत होती है. इसके ऊपर भगवान शिव के वाहन नंदी महाराज विराजमान होते हैं. सेंगोल पांच फीट लंबा है. 

इसे तमिलनाडु के एक प्रमुख धार्मिक मठ के मुख्य आधीनम (पुरोहितों) का आशीर्वाद प्राप्त है. 1947 के इसी सेंगोल को प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लोकसभा में अध्यक्ष के आसन के पास प्रमुखता से स्थापित किया जाएगा. सेंगोल विशेष अवसरों पर बाहर ले जाया जाएगा, ताकि जनता भी इसके महत्व को जान सके.

गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि इसके 75 साल बाद आज देश के अधिकांश नागरिकों को इसकी जानकारी नहीं है. शाह ने स्वतंत्रता के एक ‘महत्वपूर्ण ऐतिहासिक’ प्रतीक ‘सेंगोल’ (राजदंड) को फिर से शुरू करने की भी घोषणा की क्योंकि यह अंग्रेजों से भारतीयों को सत्ता के हस्तांतरण का प्रतीक था. पीएम मोदी नए संसद भवन के उद्घाटन से पहले तमिलनाडु से सेंगोल प्राप्त करेंगे और वह इसे नए संसद भवन के अंदर रखेंगे. 

सेंगोल स्पीकर की सीट के पास रखा जाएगा. यह अब तक इलाहाबाद के एक संग्रहालय में रखा गया था और अब इसे नए संसद भवन में ले जाया जाएगा. शाह ने बताया कि पीएम मोदी को जब इस परंपरा की जानकारी मिली तो गहन चर्चा-विमर्श के बाद उन्होंने सेंगोल को संसद में स्थापित करने का फैसला लिया. वहीं 96 साल के तमिल विद्वान जो 1947 में उपस्थित थे, नए संसद में सेंगोल की स्थापना के समय मौजूद रहेंगे.

भारत की स्वतंत्रता के समय इस पवित्र सेंगोल को प्राप्त करने की घटना को दुनियाभर के मीडिया ने व्यापक रूप से कवर किया था. भारत को स्वर्ण राजदंड मिलने के बाद कलाकृति को एक जुलूस के रूप में संविधान सभा हॉल में भी ले जाया गया था.

ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक, तमिल परंपरा में राज्य के महायाजक (राजगुरु) नए राजा को सत्ता ग्रहण करने पर एक राजदंड भेंट करता है. परंपरा के अनुसार यह राजगुरु, थिरुवदुथुरै अधीनम मठ का होता है. इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए भारत के अंतिम वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन ने 14 अगस्त 1947 को रात के 11.45 बजे यानी आजादी मिलने से 15 मिनट पहले थिरुवदुथुरै अधीनम मठ के राजगुरु ने राजदंड माउंटबेटन को दिया. बकायदा पूजा के बाद राजदंड सेंगोल को पहले पीएम नेहरू को भेंट किया गया था.

बता दे कि आजादी के 75 साल बाद आज ज्यादातर लोगों को इस बारे में जानकारी नहीं है. ऐसा कहा जाता है कि जब लॉर्ड माउंट बेटन ने पंडित नेहरू से पूछा कि आजादी का समारोह कैसा होना चाहिए और इसका प्रतीक क्या होना चाहिए, तो उन्होंने सी गोपालचारी से इस बारे में विमर्श किया. जिसके बाद उन्होंने नेहरू को सेंगोल के बारे में बताया, जिसे बाद में तमिलनाडु से मंगाया गया. 

सेंगोल राजदंड का पहला ज्ञात उपयोग मौर्य साम्राज्य द्वारा किया गया था. मौर्य सम्राटों ने अपने विशाल साम्राज्य पर अपने अधिकार को दर्शाने के लिए सेनगोल राजदंड का इस्तेमाल किया. गुप्त साम्राज्य चोल साम्राज्य और विजयनगर साम्राज्य द्वारा सेनगोल राजदंड का भी इस्तेमाल किया गया था. सेंगोल राजदंड आखिरी बार मुगल साम्राज्य द्वारा इस्तेमाल किया गया था. मुगल बादशाहों ने अपने विशाल साम्राज्य पर अपने अधिकार को दर्शाने के लिए सेनगोल राजदंड का इस्तेमाल किया. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत पर अपने अधिकार के प्रतीक के रूप में सेनगोल राजदंड का भी उपयोग किया गया था.

बता दे तमिलनाडु सरकार ने 2021-22 के ‘हिन्दू रिलिजियस एंड चैरिटेबल एंडोमेंट डिपार्टमेंट'- हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती विभाग (एचआर एंड सीई) के पॉलिसी नोट में राज्य के मठों द्वारा निभाई गई भूमिका को गर्व से प्रकाशित किया है. इस दस्तावेज़ के पैरा 24 में मठों द्वारा शाही परामर्शदाता के रूप में निभाई गई भूमिका पर स्पष्ट रूप से प्रकाश डाला गया है.

यह ऐतिहासिक योजना आधीनम के अध्यक्षों से विचार-विमर्श करके बनाई गई है. सभी 20 आधीनम के अध्यक्ष इस शुभ अवसर पर आकर इस पवित्र अनुष्ठान की पुनर्स्मृति में अपना आशीर्वाद भी प्रदान कर रहे हैं. इस पवित्र समारोह में 96 साल के श्री वुम्मिडी बंगारु चेट्टी जी भी सम्मिलित होंगे, जो इसके निर्माण से जुड़े रहे हैं.

वैदिक परंपरा में दो तरह के सत्ता के प्रतीक हैं. राजसत्ता के लिए “राजदंड” और धर्मसत्ता के लिये “धर्मदंड. राजदंड राजा के पास होता था और धर्मदंड राजपुरोहित के पास.

वहीं समकालीन समय में, सेंगोल को अत्यधिक सम्मानित किया जाता है और गहरा सांस्कृतिक महत्व रखता है. यह विरासत और परंपरा के प्रतीक के रूप में प्रतिष्ठित है, जो विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रमों, त्योहारों और महत्वपूर्ण समारोहों के अभिन्न अंग के रूप में कार्य करता है. वहीं नए संसद भवन के उद्घाटन और सेंगोल की स्थापना इसे राजनीतिक दृष्टि से नहीं, बल्कि परंपरा के रूप में देखा जाना चाहिए. जो लोग इसका विरोध कर रहे है उन्हें राजनीति से ऊपर उठ कर इस ऐतिहासिक पल का गवाह बनना चाहिए.