सिर्फ धन के लिए ही नहीं अकाल मृत्यु से बचने के लिए धनतेरस के दिन जरूर जलाये यमदीपक जानिए जलाने का सही समय, पूजन विधि

धनतेरस पर लक्ष्मी पूजा के साथय ही धन कुबेर पूजा के साथ यम का दीपक जलाया जाता है। इससे घर में लक्ष्मी आती है और समृद्धि भी बढ़ती है। धन कुबेर की कृपा से धन की प्राप्ति होती है। लेकिन इस मौके पर यम का दीपक जलाना भी महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों के अनुसार धनतेरस की शाम दीपदान का बड़ा ही महत्व है। माना जाता है कि इससे यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु से बचाव होता है।

धनतेरस के दिन यमदेव की पूजा की जाती है। माना जाता है की इस दिन यमदेव का पूजन करने से यमदेव हमें अकालमृत्यु का भय दूर करते हैं। इसलिए अकालमृत्यु से बचने के लिए धनतेरस को यमदेव की पूजा की जाती है। धनतेरस का दीपक मृत्यु के नियंत्रक देव यमराज के निमित्त जलाया जाता है, इसलिए दीप जलाते समय पूर्ण श्रद्धा से उन्हें नमन करने के साथ ही यह भी प्रार्थना करें कि वे आपके परिवार पर दया दृष्टि बनाए रखें और किसी की अकाल मृत्यु न हो।

यम दीपक कैसे बनाये किस समय और कैसे जलाये जानकारी के लिए वीडियो देखे

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माना जाता है कि धनतेरस पर लक्ष्मी पूजा के साथय ही धन कुबेर पूजा के साथ यम का दीपक जलाया जाता है। इससे घर में लक्ष्मी आती है और समृद्धि भी बढ़ती है। धन कुबेर की कृपा से धन की प्राप्ति होती है। लेकिन इस मौके पर यम का दीपक जलाना भी महत्वपूर्ण माना गया है। शास्त्रों के अनुसार धनतेरस की शाम दीपदान का बड़ा ही महत्व है। माना जाता है कि इससे यमराज प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु से बचाव होता है। इस संदर्भ में कथा है कि, प्राचीन काल में एक हिम नामक राजा हुए। विवाह के कई वर्षों बाद इन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। ज्योतिषियों ने जब राजकुमार की कुण्डली देखी तो कहा कि विवाह के चौथे दिन राजकुमार की मृत्यु हो जाएगी। राजा रानी इस बात को सुनकर दुःखी हो गये। समय बितता गया और राजकुमार की शादी हो गयी। विवाह का चौथा दिन भी आ गया।

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राजकुमार की मृत्यु होने के भय से सभी लोग सहमे हुए थे। लेकिन राजकुमार की पत्नी चिंता मुक्त थी। उसे मां लक्ष्मी की भक्ति पर पूरा विश्वास था। शाम होने पर राजकुमार की पत्नी ने पूरे महल को दीपों से सजा दिया। इसके बाद मां लक्ष्मी के भजन गाने लगी। यमदूत जब राजकुमार के प्राण लेने आये तो मां लक्ष्मी की भक्ति में लीन राजकुमार की पतिव्रता पत्नी को देखकर महल में प्रवेश करने का साहस नहीं जुटा पाये। यमदूतों के लौट जाने पर यमराज स्वयं सर्प का रूप धारण करके महल में प्रवेश कर गये। सर्प बने यमराज जब राजकुमारी के कक्ष के समाने पहुंचे तब दीपों की रोशनी और लक्ष्मी मां की कृपा से सर्प की आंखें चौंधिया गयी और सर्प बने यमराज राजकुमारी के पास पहुंच गये। राजकुमारी के भजनों में यमराज ऐसे खोये की उन्हें पता ही नहीं चला कि कब सुबह हो गयी।

राजकुमार की मृत्यु का समय गुजर जाने के बाद यमराज को खाली हाथ लौटना पड़ा और राजकुमार दीर्घायु हो गया। ऐसी मान्यता है कि इसी दिन से धनतेरस के दिन यमदीप जलाने की परंपरा शुरू हुई।

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धनतेरस के दिन आटे का चार मुख (चौमुखा) दीया बना लें या फिर कोई पुराना इस्तेमाल किया हुआ मिट्टी का दिया ले लें. रात के समय दीप में तेल डालकर चार बत्तियां लगाकर जलाएं. इसके बाद घर के कोन में दीप को दिखा कर दक्षिण दिशा की ओर मुख करके ‘मृत्युनां दण्डपाशाभ्यां कालेन श्यामया सह। त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम्’ मंत्र का जप करते हुए यम का पूजन करें. फिर घर के बाहर मुख्य द्वार पर इस दीप को रख दें.

भगवान कुबेर को सफेद और धनवंतरि को पीली मिठाई को भोग लगाना उचित माना जाता है। वहीं पूजा के दौरान "ॐ ह्रीं कुबेराय नमः" का जाप करें। और फिर इसके पश्चात 'धनवंतरि स्तोत्र' का पाठ करना चाहिए। पूजा के पश्चात कुबेर को धन स्थान पर और धनवंतरि को पूजा स्थान पर स्थापित करें।

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