एक और वादा जल्द ही पूरा करेंगे PM मोदी, विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ कराने की कवायद तेज
लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मौकों पर कह चुके हैं। एक साथ चुनाव कराने से देश का करोड़ों रुपये का खर्च बच सकता है जो लगातार किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहने के कारण होता रहता है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार कहते रहे हैं कि एक साथ चुनाव कराने से देश का करोड़ों रुपये का खर्च बच सकता है जो लगातार किसी न किसी राज्य में चुनाव होते रहने के कारण होता रहता है। वहीं, सुरक्षा बलों को भी पूरे देश में बार-बार भेजना पड़ता है जिससे उनका काम प्रभावित होता है। आदर्श आचार चुनाव संहिता लगने के कारण विकास कार्य भी प्रभावित होते हैं।
केंद्र सरकार ने देश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराने के लिए कवायद तेज कर दी है। सरकार ने इस मुद्दे का अध्ययन करने के लिए मामला विधि आयोग को सौंपा है ताकि व्यावहारिक रोडमैप और रूपरेखा तय की जा सके। लोकसभा के अगले चुनाव लगभग दो वर्ष बाद 2024 में होंगे जिसके साथ छह राज्यों के विधानसभा चुनाव भी होने हैं। केंद्र सरकार ने वर्ष 2014 से 2020 तक 5794 करोड़ रुपये जारी किए हैं। छह वर्ष की इस अवधि में 50 विधानसभा चुनाव और दो बार लोकसभा के चुनाव हुए हैं। नियमानुसार, लोकसभा चुनावों में पूरा खर्च केंद्र सरकार उठाती है जबकि विधानसभा चुनावों का खर्च संबंधित राज्य उठाता है। सरकार का कहना है कि यदि चुनाव एक साथ हों तो यह खर्च आधा हो जाएगा और केंद्र तथा राज्य सरकारों को आधा-आधा खर्च ही वहन करना पड़ेगा।
लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने की बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मौकों पर कह चुके हैं। 31 दिसंबर 2016 को राष्ट्र के नाम संबोधन में पीएम ने कहा कि विकास के पहिए में गति बरकरार रहे इसके लिए जरूरी है कि चुनावी प्रक्रिया एक साथ ही पूरी की जाए। ऐसा करने से आम लोगों के लिए सरकारों के पास पर्याप्त समय होगा। इससे पहले अप्रैल 2016 में दिल्ली में मुख्यमंत्रियों और मुख्य न्यायधीशों के सम्मेलन में भी पीएम ने एक साथ चुनाव कराने का जिक्र किया था।
पीएम मोदी ने कहा था कि ज्यादातर दल उनसे कह रहे हैं कि चुनावों की वजह से बहुत वक्त बर्बाद होता है और चीजें रुक जाती हैं। आचार संहिता की वजह से 40-50 दिन तक फैसले लंबित रहते हैं। सार्वजनिक मंच पर प्रधानमंत्री ने पहली बार इस मुद्दे को उठाया और लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन से उन्हें समर्थन मिला था। स्पीकर ने कहा कि इससे समय और धन बचेगा।
वर्ष 2018 में विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ऐसा माहौल है कि देश में विधानसभा और लोकसभा के चुनाव एक साथ कराने की जरूरत है। आयोग ने उस समय सुझाव दिए थे कि संविधान के अनुच्छेद 83 (संसद के कार्यकाल), अनुच्छेद 172 (विधानसभा के कार्यकाल) तथा जनप्रतिनिधत्व कानून, 1951 में संशोधन करने के बाद चुनाव एक साथ करवाए जा सकते हैं। इससे देश के लगातार चुनाव मोड में रहने से निजात पाई जा सकती है।
सरकार ने विधि आयोग को यह मुद्दा जरूर दिया है लेकिन इस समय विधि आयोग में कोई अध्यक्ष नहीं है और आयोग का कार्यकाल फरवरी 2023 में समाप्त होने वाला है। विधि आयोग के अध्यक्ष सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त जज को बनाया जाता है। वहीं, इससे पूर्व 2016 में संसदीय समिति भी अपनी अंतरिम रिपोर्ट दे चुकी है। सरकार ने इस रिपोर्ट को भी आयोग को दिया है जिसे एक महत्वपूर्ण कदम के रूप में देखा जा रहा है। रिपोर्ट में संसदीय समिति ने भी एक साथ चुनाव कराने की आवश्यकता बताई थी लेकिन कहा था कि सभी राजनीतिक दलों और क्षेत्रों की एक साथ चुनाव पर सहमति बनाने में एक दशक का समय लग सकता है।
पहली चार लोकसभाओं में चुनाव विधानसभाओं के और लोकसभा के एक साथ ही हुए हैं, उसके बाद स्थिति ऐसी आई और पहले विधानसभाओं से शुरू हुआ कि किसी विधानसभा का चुनाव पहले करना पड़ा क्योंकि वहां पर दल बदल की वजह से या किसी और वजह से सरकार गिर गई और चुनाव जल्दी कराने पड़े थे और अलग-अलग विधानसभा के चुनाव अलग-अलग समय पर होने लगे। उनका निजी मत और संविधान आयोग उसका भी मत ये था कि एक साथ 'विद ए हैमर' सारे चुनाव करना राजनीतिक दृष्टि से संभव नही होगा...उद्देश्य ये रखा जाए कि चुनाव एक साथ हों लेकिन दो-तीन झटकों या फिर एक प्रक्रिया के तहत हो। कोई संविधानिक कठिनाई नहीं है क्योंकि संविधान में पहले से ही स्पष्ट प्रावधान है जिसके अंतर्गत कभी भी किसी भी विधानसभा का लोकसभा का विघटन किया जा सकता है।
जहां तक निर्वाचन आयोग का सवाल है तो वह पहले ही कह चुका है कि उसे एक साथ चुनाव कराने में कोई दिक्कत नहीं है। इसके लिए उसे बस वोटिंग मशीनों की संख्या बढ़ानी होगी जिसे वह एक तय समय में कर सकता है। बता दें कि देश में विधानसभा और लेाकसभा के चुनाव 1951 से लेकर 1967 तक एकसाथ हुए हैं। चार लोकसभा और विधानसभा चुनाव लगातार साल 1952, 1957, 1962 और 1967 में एक साथ हुए थे। लेकिन 1971 में इंदिरा गांधी ने लोकसभा भंग कर दी थी और तब से इसका सिलसिला टूट गया।