राष्ट्रपति ने लगाई मोहर, देश के अगले चीफ जस्टिस होंगे जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़
मौजूदा सीजेआई उदय उमेश ललित के 65 वर्ष की आयु पूरी कर लेने पर रिटायर हो जाने के एक दिन बाद 9 नवंबर को जस्टिस चंद्रचूड़ चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ लेंगे. जस्टिस चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज वाई.वी. चंद्रचूड़ के बेटे हैं, जो 1978 से 1985 के बीच लगभग सात साल और चार महीने पद पर रहे थे. वह सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले सीजेआई थे.
न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ सोमवार को देश के 50वें प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) नियुक्त किये गए. केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रीजीजू ने यह जानकारी दी. कानून मंत्री रीजीजू ने इस संबंध में जानकारी देते हुए ट्वीट किया, ‘संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों का उपयोग करते हुए माननीय राष्ट्रपति ने उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश डॉ. न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ को देश का प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किया है. यह नियुक्ति नौ नवंबर 2022 से प्रभावी होगी.’ न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 को सेवानिवृत्त होंगे.
मौजूदा सीजेआई उदय उमेश ललित के 65 वर्ष की आयु पूरी कर लेने पर रिटायर हो जाने के एक दिन बाद 9 नवंबर को जस्टिस चंद्रचूड़ चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ लेंगे. जस्टिस ललित का 74 दिनों का संक्षिप्त कार्यकाल रहा, जबकि सीजेआई के पद पर न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ का कार्यकाल दो वर्षों का होगा. जस्टिस चंद्रचूड़ 10 नवंबर 2024 को रिटायर होंगे. जस्टिस यूयू ललित ने 27 अगस्त के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के तौर पर पदभार संभाला था. हालांकि अब वे अपने 74 दिन के कार्यकाल के बाद 8 नवंबर, 2022 को रिटायर हो जाएंगे. बीते 7 अक्टूबर को केंद्र सरकार सीजेआई उदय उमेश ललित को पत्र लिखकर उनसे अपना उत्तराधिकारी नामित करने के लिए कहा था, जिसके बाद जस्टिस यूयू ललित ने सुप्रीम कोर्ट के सभी जजों की एक बैठक बुलाई थी. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट के अगले सीजेआई के तौर पर डी. वाई. चंद्रचूड़ के नाम की चिट्ठी केंद्र सरकार को भेजी गई थी.
गौरतलब है कि जस्टिस चंद्रचूड़ सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज वाई.वी. चंद्रचूड़ के बेटे हैं, जो 1978 से 1985 के बीच लगभग सात साल और चार महीने पद पर रहे थे. वह सबसे लंबे समय तक सेवा देने वाले सीजेआई थे. उनके कार्यकाल के दौरान न्यायमूर्ति डी.वाई. चंद्रचूड़ ने अपने पिता के दो फैसलों को पलट दिया था, जो व्यभिचार और निजता के अधिकार से संबंधित थे. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने हार्वर्ड लॉ स्कूल से पीएचडी की उपाधि प्राप्त की और उन्हें गैर-अनुरूपतावादी न्यायाधीश के रूप में जाना जाता है. उन्होंने कोविड के समय में वर्चुअल सुनवाई शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो अब एक स्थायी विशेषता बन गई है. वह अयोध्या राम जन्मभूमि विवाद, समलैंगिकता के अपराधीकरण्,व्यभिचार, निजता, सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश आदि पर ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहे हैं.