हर महिला को गर्भपात का अधिकार, सुप्रीम कोर्ट का महिला अधिकारों पर ऐतिहासिक आदेश
सुप्रीम कोर्ट ने फैसले मे कहा है कि सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार है चाहे वो विवाहित हो या अविवाहित, सभी महिलाएं सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं. गर्भपात के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत पति द्वारा यौन हमले को मेरिटल रेप के अर्थ में शामिल किया जाना चाहिए. मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP ) एक्ट से अविवाहित महिलाओं या लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को बाहर करना अधिकारों का उल्लंघन है.
देश में महिला सुरक्षा और उनके अधिकारों पर खूब बहस होती है. महिलाओं को सक्षम करने बनाने के लिए बहुत काम भी किए गए, लेकिन कुछ मामले ऐसे हैं जिन पर ध्यान देना बहुत ज्यादा जरूरी है. इसी बीच महिला अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का एक और ऐतिहासिक आदेश आया है. सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार है चाहे वो विवाहित हो या अविवाहित, सभी महिलाएं सुरक्षित और कानूनी गर्भपात की हकदार हैं. गर्भपात के लिए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत पति द्वारा यौन हमले को मेरिटल रेप के अर्थ में शामिल किया जाना चाहिए.
MTP कानून में विवाहित और अविवाहित महिला के बीच का अंतर कृत्रिम और संवैधानिक रूप से टिकाऊ नहीं है. यह इस रूढ़िवादिता को कायम रखता है कि केवल विवाहित महिलाएं ही यौन गतिविधियों में लिप्त होती हैं. किसी महिला की वैवाहिक स्थिति उसे अनचाहे गर्भ को गिराने के अधिकार से वंचित करने का आधार नहीं हो सकती.
यहां तक कि अकेली और अविवाहित महिला को भी मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट के तहत गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक के नियमों के तहत गर्भपात का अधिकार है. यह अधिकार उन महिलाओं के साथ होगा जो अपने अवांछित गर्भधारण को जारी रखने के लिए मजबूर हैं.
नियम 3 (बी) के दायरे में एकल महिलाओं को शामिल करने का कोई औचित्य नहीं है और यह अनुच्छेद 14 के तहत समानता के अधिकार का उल्लंघन होगा. अविवाहित और एकल महिलाओं को गर्भपात करने से रोकना लेकिन विवाहित महिलाओं को अनुमति देना मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है. ये फैसला जस्जिट डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने सुनाया है.