निकाय चुनाव के पहले जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल पार्टी को तगड़ा झटका, छिन सकता है 'हैंडपंप'?

चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों की समीक्षा करते हुए कई पार्टियों को राष्ट्रीय स्तर का दर्जा भी दिया. साथ ही कई दलों को राष्ट्रीय स्तर और राज्यस्तरीय दर्जा वापस ले लिया. राज्य स्तरीय दर्जा वापस होने पर राष्ट्रीय लोक दल का चुनाव चिन्ह भी अब उनसे छीन लिया जा सकता है.

निकाय चुनाव के पहले जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल पार्टी को तगड़ा झटका, छिन सकता है 'हैंडपंप'?

राष्ट्रीय लोक दल से राज्य स्तरीय पार्टी का दर्जा वापस ले लिया गया है. उत्तर प्रदेश में नगर निकाय चुनाव के पहले ये जयंत चौधरी की पार्टी के लिए तगड़ा झटका माना जा रहा है. रालोद ने नगर निकाय चुनाव समाजवादी पार्टी के साथ लड़ने का फैसला किया है. 

वेस्ट यूपी में उसके कई नगर निगम और नगरपालिका सीटों पर लड़ने की तैयारी है. पार्टी का चुनाव चिन्ह हैंडपप है और सभी दल इस बार भी अपने चुनाव चिन्ह पर ही मैदान में उतरने की तैयारी में हैं. ऐसे में राज्य स्तर की पार्टी का दर्जा छिनने से उसके सियासी समीकरणों पर पानी फिर सकता है.

चुनाव आयोग ने राजनीतिक पार्टियों की समीक्षा करते हुए कई पार्टियों को राष्ट्रीय स्तर का दर्जा भी दिया. साथ ही कई दलों को राष्ट्रीय स्तर और राज्यस्तरीय दर्जा वापस ले लिया. वहीं गैर मान्यता प्राप्त पार्टी चुनाव आयोग में रजिस्टर्ड तो होती हैं, लेकिन इन्हें मान्यता नहीं होती है.

राज्य स्तरीय दर्जा वापस होने पर राष्ट्रीय लोक दल का चुनाव चिन्ह भी अब उनसे छीन लिया जा सकता है. चुनाव आयोग ने मंगलवार को आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय स्तर का दर्जा भी प्रदान किया. साथ ही तृणमूल कांग्रेस, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का ये राष्ट्रीय पार्टी का तमगा छीन लिया है. 

राष्ट्रीय लोक दल का पश्चिमी उत्तर प्रदेश में काफी जनाधार रहा है. पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बाद उनके बेटे अजित सिंह का भी किसान बेल्ट में काफी प्रभाव रहा है. अजित सिंह के बाद  अब पार्टी की कमान जयंत चौधरी के पास है. हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव और उसके बाद विधानसभा चुनावों को देखें तो रालोद का प्रदर्शन काफी निराशाजनक रहा है.

जयंत चौधरी खुद हेमा मालिनी खुद मथुरा लोकसभा सीट से चुनाव हार चुके हैं. यूपी विधानसभा चुनाव 2022 में सपा और रालोद ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था. लेकिन वेस्ट यूपी में आरएलडी महज 9 सीटें ही जीत पाई. जबकि उसे आस थी कि किसान आंदोलन को लेकर उपजे असंतोष का फायदा उसे चुनाव में मिलेगा. रालोद यूपी के अलावा हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों में भी अपनी पैठ जमाने की कोशिश करती रही है.