आज है मैथमेटिक्स डे, जानिए-महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जीवन के बारे में

श्रीनिवास रामानुजन एक महान भारतीय गणितज्ञ थे। रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर, 1887 को तमिलनाडु के इरोड गांव में हुआ था। हार्डी ने साल 1913 में रामानुजन को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के लिए आमंत्रित किया। हालांकि, साल 1919 में हेपेटिक अमीबासिस ने रामानुजन को भारत लौटने के लिए मजबूर किया। रामानुजन ने गणित के ऐसे-ऐसे सिद्धांत दिए जिन्‍हें आज तक सुलझाया नहीं जा सका है। उनके फॉर्मूलों कई वैज्ञानिक खोजों में मददगार साबित हुए. उनके लिखे हुए कई प्रमेय सिद्ध किए जा चुके हैं। लेकिन अब तक यह नहीं समझा जा सका है कि आख‍िर उन्‍होंने ऐसे जटिल फॉर्मूलों के बारे में सोचा कैसे होगा।

आज है मैथमेटिक्स डे, जानिए-महानतम गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जीवन के बारे में

22 दिसंबर को हर साल भारत में मैथमेटिक्स डे मनाया जाता है. इस दिन को महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन के जन्मदिन के अवसर पर मनाया जाता है।   रामानुजन का निधन 33 वर्ष की उम्र में हो गया था।  अपनी इस छोटी सी उम्र तक उन्होंने दुनिया को लगभग 3500 गणितीय सूत्र दिए थे। 

महान भारतीय गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन की स्मृति में वर्ष 2005 में इस पुरस्कार की शुरुआत तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने की थी और तब से प्रतिवर्ष यह सि​लसिला चला आ रहा है।  इसे इंटरनेशनल सेंटर फॉर थियोरेटिकल फिजिक्स रामानुजन पुरस्कार भी कहा जाता है।  यह पुरस्कार इटली में स्थित अंतर्राष्ट्रीय सैद्धांतिक भौतिकी केंद्र द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। 

श्रीनिवास रामानुजन एक महान भारतीय गणितज्ञ थे।  रामानुजन का जन्म 22 दिसंबर, 1887 को तमिलनाडु के इरोड गांव में हुआ था। रामानुजन के पिता साड़ी की दुकान पर एक क्लर्क थे और उनकी मां हाउस वाइफ थी। 1889 में चेचक की गिरफ्त में आने से उनके सभी भाई बहनों की मृत्यु हो गई थी, लेकिन रामानुजन ठीक हो गए थे। आपको बता दें रामानुजन पैदा होने के बाद करीब तीन साल तक बोले नहीं थे, घरवाले इन्हें गूंगा समझते थे। उन्होंने गणित के क्षेत्र में संख्या सिद्धांत, गणितीय विश्लेषण और अनंत श्रृंखला में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। एक अंग्रेज गणितज्ञ हार्डी ने उनके योगदान को पहचाना। 

हार्डी ने साल 1913 में रामानुजन को कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के लिए आमंत्रित किया।  हालांकि, साल 1919 में हेपेटिक अमीबासिस ने रामानुजन को भारत लौटने के लिए मजबूर किया।  बाद में, वे टीबी से पीड़ित हो गए. भारत लौटने के बाद लंबी बीमारी के कारण 26 अप्रैल, 1920 को मात्र 32 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। रामानुजन ने गणित के ऐसे-ऐसे सिद्धांत दिए जिन्‍हें आज तक सुलझाया नहीं जा सका है।  उनके फॉर्मूलों कई वैज्ञानिक खोजों में मददगार साबित हुए. उनके लिखे हुए कई प्रमेय सिद्ध किए जा चुके हैं। लेकिन अब तक यह नहीं समझा जा सका है कि आख‍िर उन्‍होंने ऐसे जटिल फॉर्मूलों के बारे में सोचा कैसे होगा। 

शुरू में रामानुजन सामान्‍य बच्‍चों की तरह ही थे।  यहां तक कि तीन साल की उम्र तक उन्‍होंने बोलना भी शुरू नहीं क‍िया था।  स्‍कूल में दाखिला हुआ तो पढ़ाने का घ‍िसा-पिटा अंदाज उन्‍हें बिलकुल भी नहीं भाया।  10 साल की उम्र में उन्‍होंने प्राइमरी एग्‍जाम में पूरे जिले में टॉप किया। जब वह 12 साल के थे तो उन्होंने त्रिकोणमिति में महारत हासिल कर ली थी और उन्होंने अपने दम पर कई प्रमेय भी विकसित की।  उन्हें गणित से इतना लगाव था कि वह गणित में पूरे अंक ले आते थे लेकिन अन्य विषयों में फेल हो जाते थे। 15 साल की उम्र में वो 'ए सिनॉपसिस ऑफ एलिमेंट्री रिजल्‍ट्स इन प्‍योर एंड एप्‍लाइट मैथमेटिक्‍स' नाम की बेहद पुरानी गणित की किताब को पूरी तरह अपने जहन में बैठा लिया था ।  इस किताब में हजारों थियोरम थे।  यह उनकी प्रतिभा का ही फल था कि उन्‍हें उन्‍हें आगे की पढ़ाई के लिए स्‍कॉलरश‍िप भी मिली। रजिस्टर महंगा होने के कारण रामानुजन स्लेट का प्रयोग करते थे। हालांकि वो एक रजिस्टर भी रखते थे जिसमें स्लेट से फॉर्मुला उतारते थे। जब वह कहीं नौकरी की तलाश में जाते थे तो अक्सर वही रजिस्टर दिखाते थे, लेकिन लोग इसे नजरअंदाज कर देते थे।

1911 में इंडियन मैथमेटिकल सोसाइट के जर्नल में उनका 17 पन्‍नों का एक पेपर पब्‍लिश हुआ जो बर्नूली नंबरों पर आधारित था। इसी दौरान रामानुजन उस समय के विश्‍व प्रसिद्ध ब्रिटिश गण‍ितज्ञ जीएच हार्डी के काम के बारे में जानने लगे थे।  1913 में रामानुजन ने अपना कुछ काम पत्र के जरिए हार्डी के पास भेजा।  शुरुआत में हार्डी ने उनके खतों को मजाक के तौर पर लिया, लेकिन जल्‍द ही उन्‍होंने उनकी प्रतिभा भांप ली।  फिर क्‍या था हार्डी ने रामानुजन को पहले मद्रास यूनिवर्सिटी में और फिर कैंब्रिज में स्‍कॉलरशिप दिलाने में मदद की, हार्डी ने रामानुजन को अपने पास कैंब्रिज बुला लिया।  ब्रिटेन के प्रोफेसर हार्डी रामानुजन को दुनिया का सबसे महान गणितज्ञ मानते थे। कहा जाता है कि उन्होंने दुनिया के प्रतिभावान व्यक्तियों को 100 नंबर पर आंका था और इस लिस्ट में खुद को सौ में से तीस नंबर दिए थे, लेकिन रामानुजन को 100 में से 100 नंबर दिए थे।हार्डी के सानिध्‍य में रामानुजन ने खुद के 20 रिसर्च पेपर पब्‍लिश किए। 1916 में रामानुजन को कैंब्रिज से बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री मिली और 1918 में वो रॉयल सोसाइटी ऑफ लंदन के सदस्‍य बन गए। रामानुजन अपने वक्त से बहुत आगे तक सोचते थे, साल 1919 में उन्होंने मॉक थीटा की खोज की, जिससे ब्रम्हांड की सबसे बड़ी पहेली ब्लैक होल को सुलझाया जा सकता है।

ऐसे समय में जब भारत अंगेरजी हुकूमत का गुलाम था उस समय किसी भारतीय को रॉयल सोसाइटी की सदस्‍यता मिलना बहुत बड़ी बात थी।  रॉयल सोसाइटी के पूरे इतिहास में रामानुजन कम आयु का कोई सदस्य आज तक नहीं हुआ है।  रॉयल सोसाइटी की सदस्यता के बाद वे ट्रिनीटी कॉलेज की फेलोशिप पाने वाले पहले भारतीय भी बने। गणित में अपने योगदान के लिए उन्हें उस समय कई सम्मान प्राप्त हुए और वे गणित से जुड़ी कई सोसाइटी में अहम पद पर रहे।  खास बात ये है कि उन्होंने णित सीखने के लिए कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं लिया था।  रामानुजन का प्रथम शोधपत्र “बरनौली संख्याओं के कुछ गुण” शोध पत्र जर्नल ऑफ इंडियन मैथेमेटिकल सोसाइटी  में प्रकाशित हुआ। 

रामानुजन कड़ी मेहनत कर रहे थे।  ब्रिटेन का ठंड और नमी वाला मौसम उन्‍हें सूट नहीं कर रहा था।  1917 में उन्‍हें टीबी भी हो गया, स्‍वास्‍थ्‍य में थोड़े-बहुत सुधार के बाद 1919 में उनकी हालत बहुत ज्‍यादा खराब हो गई और वो भारत लौट आए।  26 अप्रैल 1920 को 32 साल की बेहद कम उम्र में उनका देहांत हो गया।  बीमारी की हालत में भी उन्‍होंने मैथ्‍स से अपना नाता नहीं तोड़ा।  बेड पर लेटे-लेटे वो थियोरम लिखते रहते थे।  पूछने पर कहते थे कि थ‍ियोरम सपने में आए थे। रामानुजन को ईश्‍वर में अपार व‍िश्‍वास था।  जब उनसे गण‍ित के फॉर्मूले की उत्‍पत्ति के बारे में पूछा जाता था तो वो कहते थे कि ईष्‍ट देवी नामगिरी देवी की कृपा से उन्‍हें यह फॉर्मूला सूझा।  वे कहते थे, 'मेरे लिए गण‍ित के उस सूत्र का कोई मतलब नहीं जिससे मुझे आध्‍यात्‍मिक विचार न मिलते हों। '

श्रीनिवास रामानुजन ना सिर्फ भारतीय बल्‍कि व‍िदेशी गण‍ितज्ञों के लिए आज भी प्रेरणास्रोत हैं। 

हाल ही में इंडियन स्टैटिस्टकल इंस्टीट्यूट, कोलकाता में मैथ की प्रोफेसर नीना गुप्ता को गणित के क्षेत्र में सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कारों में से एक रामानुजन पुरस्कार मिला है।  इस पुरस्कार का पूरा टाइटल रामानुजम प्राइज फॉर यंग मैथमेटिशियन है।  अलजेब्रिक जियोमेट्रो और कम्यूटेटिव अल्जेब्रा में शानदार कार्य के लिए नीना गुप्ता को ‘विकासशील देशों के युवा गणितज्ञों का 2021 DST-ICTP-IMU रामानुजन पुरस्कार’ दिया गया है। प्रो नीना गुप्ता यह सम्मान पाने वाली तीसरी महिला हैं।  वहीं, अब तक चार भारतीयों को यह पुरस्कार मिल चुका है. मिनिस्ट्री ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार, प्रो नीना गुप्ता को यह पुरस्कार मिलने के बाद इंडियन स्टैटिस्टकल इंस्टीट्यूट का मान बढ़ा है।  कारण कि अब तक जिन चार भारतीयों को रामानुजन पुरस्कार मिला है, उनमें से तीन ISI के ही फैकल्टी मेंबर हैं।