साइबर फ्रॉड की अनोखी दास्तान- बिहार पुलिस के DGP फ़र्ज़ी चीफ जस्टिस की कॉल पर कर गए ये काम

साइबर फ्रॉड की अनोखी दास्तान- बिहार पुलिस के DGP फ़र्ज़ी चीफ जस्टिस की कॉल पर कर गए ये काम

ऐसा घनघोर चमत्कार शायद बिहार में ही मुमकिन है. वरना ऐसा कैसे हो सकता है कि एक आला दर्जे का ठग खुद को राज्य का चीफ जस्टिस बता कर सूबे के डीजीपी को एक-एक कर कम से कम चालीस से पचास बार कॉल कर डाले और इसी फर्जी चीफ जस्टिस के प्रभाव में आकर डीजीपी साहब वो कर दें, जो तमाम कायदे कानूनों से परे हो.  

बिहार के चीफ जस्टिस बिहार के डीजीपी को फोन करते हैं. फोन पर कहते हैं कि एक एसएसपी हैं, जिनके खिलाफ एक मुकदमा दर्ज है. उस मुकदमे को खत्म कर दीजिए और उन उन्हें क्लीन चिट दे दीजिए. अब चीफ जस्टिस का हुक्म था, लिहाजा बिहार के डीजीपी ने वैसा ही किया, जैसा वो चाहते थे. उन्होंने उस एसएसपी को क्लीन चिट दे दी. लेकिन बाद में चीफ जस्टिस की कॉल को लेकर एक ऐसा खुलासा हुआ कि खुद डीजीपी और उनका पूरा महकमा सकते में आ गया. डीजीपी साहब अपने मातहत एक आईपीएस अफसर के खिलाफ दर्ज सरकारी काम में लापरवाही का मुकदमा ही अपने तौर पर वापस ले लिए. दरअसल, बिहार में एक आईपीएस से मिली भगत कर हम तो डूबेंगे सनम तुमको भी ले डूबेंगे की तर्ज पर एक ठग ने ऐसा जाल बट्टा फैलाया कि अब इस कहानी के सामने आने के बाद पूरे बिहार के सियासी और सरकारी महकमे में खलबली मची है. 

साइबर अपराधी अभिषेक अग्रवाल ने IPS आदित्य को शराब कांड से बरी कराने के लिए 40 से 50 कॉल किए. उसने यह कॉल 22 अगस्त से 15 अक्टूबर के बीच में किए। बिहार पुलिस के मुखिया साइबर अपराधी की जाल में इस तरह से फंस गए कि अभिषेक चीफ जस्टिस बोल कर जो-जो निर्देश देता था, डीजीपी उसे पूरा करते रहे.

गृह विभाग के एक बड़े अफसर के मुताबिक, अभिषेक अग्रवाल ने आईपीएस अफसर आदित्य कुमार को शराब कांड से बरी कराने के बाद जब पोस्टिंग के लिए दबाव बनाया तो डीजीपी ने डर के कारण फाइल की अनुशंसा कर दी. फाइल जब गृह विभाग पहुंची तो वहां मंथन शुरू हो गया. एक आईपीएस पर लगे शराब कांड के आरोप को इतना जल्दी खत्म कर देना और फिर पोस्टिंग की अनुशंसा करना सवाल खड़े कर रहा है.

इस कहानी की शुरुआत होती है कि बिहार के गया जिले से. आपको पता होगा कि नीतीश कुमार के राज में बिहार में शराबबंदी कानून लागू है. ये मामला आईपीएस आदित्य कुमार से जुड़ा है. बात उन दिनों की है, जब आदित्य कुमार गया के एसएसपी हुआ करते थे.  

गया में शराबबंदी कानून के उलंघन में थानेदार और एसएसपी की मनमानी से हुई बिहार पुलिस की किरकिरी के बाद डीजीपी ने मामले में संज्ञान लिया। इसके बाद डीजीपी ने पूरे मामले की जांच के आदेश दिए. जांच के दौरान आरोप पूरी तरह से सही पाया गया, जिसके बाद पुलिस अधीक्षक हेडक्वार्टर अंजनी कुमार सिंह ने गया के पूर्व एसएसपी आदित्य कुमार और फतेहपुर के पूर्व थानेदार रहे संजय कुमार के खिलाफ फतेहपुर में ही मामला दर्ज कराया था. 

सितंबर में एसएसपी आदित्य कुमार ने इस मामले में खुद पर लटक रही कानून की तलवार को हटाने का एक नायाब तरीका ढूंढ निकाला और इस तरीके को अमल में लाने की जिम्मेदारी ठगी की दुनिया के पुराने और शातिर खिलाड़ी और अपने खास दोस्त अभिषेक अग्रवाल को सौंपी.  अभिषेक अग्रवाल ने फर्जी सिमकार्ड्स के जरिए अब सीधे डीजीपी को ही ताबड़तोड़ कॉल करना शुरू कर दिया और हर कॉल में आईपीएस आदित्य कुमार पर दर्ज केस को खत्म करने के लिए दबाव बनाता रहा.  

लेकिन जब बिहार पुलिस के ही खुफिया विभाग ने मामले की जांच की, तो असली कहानी सामने आ गई.  बिहार पुलिस के ही ईओयू ने इस सिलसिले में आईपीएस आदित्य कुमार और उनके ठग दोस्त अभिषेक अग्रवाल समेत कई लोगों के खिलाफ आईपीसी की धारा 353, 387, 419, 420, 468 और 120बी के तहत ठगी का केस दर्ज कर लिया है.