होलिकाष्टक कब है ९ मार्च या १० मार्च, जानिए प्रमाण सहित क्यों मांगलिक कार्य वर्जित होते है
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार होलाष्टक के दौरान हर तरह के शुभ और मांगलिक कार्य वर्जित माने गए हैं। होलाष्टक प्रारंभ होते ही प्राचीन काल में होलिका दहन वाले स्थान की गोबर, गंगा जल आदि से लिपाई की जाती थी और वहां पर होलिका का डंडा लगा दिया जाता था जिनमें एक को होलिका और दूसरे को प्रह्लाद माना जाता है।
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इस वर्ष होलाष्टक वास्तव में सनातन पंचांग के अनुसार ९ मार्च की अर्धरात्रि से शुरू हो रहे है अंग्रेजी केलिन्डर के अनुसार १० मार्च को सुबह तड़के का समय मान्य रहेगा। तथा 17 मार्च को होलिका दहन के साथ होलाष्टक की समाप्ति हो जाएगी और 18 मार्च को होली खेली जाएगी। फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि का प्रारंभ ९ मार्च की अर्धरात्रि या कहे 10 मार्च को तड़के 02.56 मिनट से होगा तथा 11 मार्च को प्रात: 05.34 मिनट तक रहेगी। अत: फाल्गुन शुक्ल अष्टमी तिथि को यानी 10 मार्च, गुरुवार से होलाष्टक का प्रारंभ हो जाएगा।
इस वर्ष फाल्गुन पूर्णिमा तिथि का आरंभ 17 मार्च 2022, दिन गुरुवार को दोपहर 01.29 मिनट से होगा और 18 मार्च, शुक्रवार को दोपहर 12.47 मिनट तक यह तिथि मान्य होगी। ऐसे में फाल्गुन पूर्णिमा 17 मार्च होगी तथा इसी दिन होलिका दहन के साथ होलाष्टक समाप्त हो जाएगा। इन 8 दिनों तक कोई मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं, क्योंकि ये 8 दिन अपशगुन वाले माने जाते हैं।
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धार्मिक मान्यता के अनुसार होलाष्टक के दौरान अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहु उग्र स्वभाव में रहते हैं। इन सभी ग्रहों के उग्र होने की वजह से मनुष्य के निर्णय लेने की क्षमता कमजोर हो जाती है, जिसके कारण कई बार उससे गलत फैसले भी हो जाते हैं, जिसके कारण हानि की आशंका बढ़ जाती है। ज्योतिष के अनुसार जिनकी कुंडली में नीच राशि के चंद्रमा और वृश्चिक राशि के जातक या चंद्र छठे या आठवें भाव में हैं उन्हें इन दिनों अधिक सतर्क रहना चाहिए। अत: होली से पहले ये 8 दिन अशुभ माने जाते हैं।
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ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि भगवान शिव की तपस्या को भंग करने के अपराध में कामदेव को शिव जी ने फाल्गुन की अष्टमी में भस्म कर दिया था। कामदेव की पत्नी रति ने उस समय क्षमा याचना की और शिव जी ने कामदेव को पुनः जीवित करने का आश्वासन दिया। इसी खुशी में लोग रंग खेलकर होली-धुलेंडी का पर्व मनाते हैं।
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