ये बातें नहीं जानते होंगे जानिए पूर्ण वैज्ञानिक सनातन शक संवत और विक्रम संवत में क्या अंतर है

आज की चर्चा में हम आपको भारत के प्राचीन सम्वत सप्तऋषि सम्वत शक सम्वत विक्रम सम्वत और उनके अंतर के बारे में कुछ रोचक तथ्य प्रस्तुत करेंगे . राष्ट्रीय शाके अथवा शक संवत भारत का राष्ट्रीय कलैण्डर है. विक्रम संवत की शुरुआत राजा विक्रमादित्य ने 57 ई.पू. की थी. कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य ने अपनी सम्पूर्ण प्रजा का ऋण खुद चुकाकर इस संवत की शुरुआत करी थी.

माना जाता है जिसका आरंभ विक्रम संवत से पूर्व 6676 ई.पू. हुआ था और इसकी शुरुआत 3076 ई. पू. हुई थी. इसके बाद कृष्ण कैलेंडर और फिर कलियुग संवत का प्रचलन हुआ था. इसके बाद 78 ई.पू. शक संवत और 57 ई. पू. विक्रम संवत का आरंभ हुआ था. सप्तर्षि संवत् भारत का प्राचीन संवत है। महाभारत काल तक इस संवत् का प्रयोग हुआ था। बाद में यह धीरे-धीरे विस्मृत हो गया। एक समय था जब सप्तर्षि-संवत् विलुप्ति की कगार पर पहुंचने ही वाला था, बच गया। इसको बचाने का श्रेय कश्मीर और हिमाचल प्रदेश को है। उल्लेखनीय है कि कश्मीर में सप्तर्षि संवत् को 'लौकिक संवत्' कहते हैं और हिमाचल प्रदेश में 'शास्त्र संवत्'। कश्मीर में प्रयुक्त सप्तर्षि संवत एक अन्य संवत है, जो लौकिक संवत के नाम से भी प्रसिद्ध है। राजतरंगिणी के अनुसार लौकिक वर्ष 24 गत शक संवत 1070 के बराबर है। इस संवत के उपयोग में सामान्यतः शताब्दियाँ नहीं दी हुई हैं। यह चन्द्र-सौर सम्वत है और चैत्र शुक्ल की प्रतिपदा को ई. पू. अप्रैल 3076 में आरम्भ हुआ।
बृहत्संहिता ने एक परम्परा का उल्लेख किया है कि सप्तर्षि एक नक्षत्र में सौ वर्षों तक रहते हैं और जब युधिष्ठर राज्य कर रहे थे तो वे मेष राशि में थे। सम्भवतः यही सौ वर्षों वाले वृत्तों का उद्गम है।
बहुत-से अन्य संवत् भी थे, जैसे - वर्धमान, बुद्ध-निर्वाण, गुप्त, चेदि, हर्ष, लक्ष्मण सेन बंगाल में, कोल्लम या परशुराम मलावार में, जो किसी समय कम से कम लौकिक जीवन में बहुत प्रचलित थे।

अब बात शक सम्वत की

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राष्ट्रीय शाके अथवा शक संवत भारत का राष्ट्रीय कलैण्डर है। यह 78 वर्ष ईसा पूर्व प्रारम्भ हुआ था। माना जाता है कि शक युग की स्थापना शतवाहन वंश के राजा शालिवाहन ने की थी. तथ्य यह है कि शक युग राजा शालिवाहन की प्रमुख सैन्य जीत के स्मरणोत्सव के रूप में बनवाया गया था, लेकिन शायद ही कोई ऐतिहासिक तथ्य है. ऐतिहासिक सर्वसम्मति यह है कि यह सामान्य काल के 78 वें वर्ष से शुरू हुआ. शालिवाहन और शक युग के बीच संबंध के शुरुआती प्रमाणों की पुष्टि 1222 ईस्वी में सोमराजा द्वारा किए गए कन्नड़ काव्य उद्भट काव्य से हुई थी. इससे मुहूर्त-मार्तण्ड जैसी रचनाओं से पता चलता है कि शक युग की शुरुआत शालिवाहन के जन्म से की गई है, 


इस संवत के पहली तिथि चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा है और इसी तिथि पर सम्राट कनिष्क ने राज्य सत्ता सम्हाली थी. यह संवत अन्य संवतों की तुलना में कहीं अधिक वैज्ञानिक और त्रुटिहीन है. यह संवत प्रत्येक वर्ष में मार्च की 22 तारीख को शुरू होता है और इस दिन सूर्य विषुवत रेखा के ऊपर होता है और इसी कारण दिन और रात बराबर के समय के होते हैं. शक संवत के दिन 365 होते हैं और इसका लीप ईयर भी अँग्रेजी ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ ही होता है. लीप ईयर होने पर शक संवत 23 मार्च को शुरू होता है और उसमें 366 दिन होते हैं. भारत में इस संवत का प्रयोग वराहमिरि द्वारा 500 ई. से किया जा रहा है.


500 ई. के उपरान्त संस्कृत में लिखित सभी ज्योतिःशास्त्रीय ग्रन्थ शक संवत का प्रयोग करने लगे। इस संवत का यह नाम क्यों पड़ा, इस विषय में विभिन्न एक मत हैं। शक संवत भारत का प्राचीन संवत है जो 78 ईसवी से आरम्भ होता है। शक संवत भारत का राष्ट्रीय कैलेंडर है।

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शक संवत्‌ के विषय में बुदुआ का मत है कि इसे उज्जयिनी के क्षत्रप चेष्टन ने प्रचलित किया। शक राज्यों को चंद्रगुप्त विक्रमादित्य ने समाप्त कर दिया पर उनका स्मारक शक संवत्‌ अभी तक भारतवर्ष में चल रहा है। इसे कुषाण राजा कनिष्क ने चलाया या किसी अन्य ने, इस विषय में अन्तिम रूप से कुछ नहीं कहा जा सका है।

अब विक्रम सम्वत से जुड़े कुछ तथ्यों को भी जानिए

विक्रम संवत की शुरुआत राजा विक्रमादित्य ने 57 ई.पू. की थी. कहा जाता है कि राजा विक्रमादित्य ने अपनी सम्पूर्ण प्रजा का ऋण खुद चुकाकर इस संवत की शुरुआत करी थी. विक्रम संवत में समय की पूरी गणना सूर्य और चाँद के आधार पर की गयी है यानि दिन, सप्ताह, मास और वर्ष की गणना पूरी तरह से वैज्ञानिक है. पौराणिक कथा के अनुसार चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना आरंभ करी थी इसलिए हिन्दू इस तिथि को 'नववर्ष का आरंभ' मानते हैं.

विक्रम संवत चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारंभ होता है और इसके महीने चांद की चाल से निर्धारित होते हैं। सूर्य के साथ इसका समन्वय करने के लिए पुरुषोत्तम मास का विधान है। आमतौर पर हर चंद्रमास में सूर्य एक राशि से दूसरी में जाता है जिसे संक्रांति कहते हैं किंतु 28 से लेकर 35 महीने के बीच एक चंद्रमास ऐसा आता है जिसमें कोई संक्रांति नहीं पड़ती और एक चंद्रमास ऐसा भी आता है जिसमें दो संक्रांतियाँ पड़ती है। हमारे देश के ज्योतिष काउंसिल द्वारा नियत है कि जिस चंद्र मास में दो संक्रांतियाँ पड़ेगी उसमें पुरुषोत्तम मास माना जाएगा।

शक सम्वत और विक्रम सम्वत में अंतर

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जैसा की हमने अभी बताया की विक्रम सम्वत चंद्र आधारित होता है जबकि शक संवत केवल सूर्य के चाल पर आधारित है इसका वर्ष 21 मार्च को प्रारंभ होता है जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है । राशियां 12 होती हैं और महीने भी उतने ही होते हैं। शुरू के 6 महीने अर्थात चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, सावन तथा भाद्रपद 31 दिन के होते हैं, जब सूर्य क्रमशः मेष, वृष,  मिथुन,  कर्क, सिंह  और कन्या  राशि में से गुजरता है  और शेष 6 महीने अर्थात अश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फागुन 30 दिन के होते हैं जब सूर्य क्रमशः तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन राशि में से गुजरता है। इनका चंद्रमा की चाल से कोई संबंध नहीं है।

वैसे तो शक संवत और विक्रम संवत के महीनों के नाम एक ही हैं और दोनों संवतों में शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष भी हैं. अंतर सिर्फ दोनों पक्षों के शुरू होने में है. विक्रम संवत में नया महीना पूर्णिमा के बाद आने वाले कृष्ण पक्ष से होता है जबकि शक संवत में नया महीना अमावस्या के बाद शुक्ल पक्ष से शुरू होता है. इसी कारण इन संवतों के शुरू होने वाली तारीखों में भी अंतर आ जाता है. शक संवत में चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा, उस महीने की पहली तारीख है जबकि विक्रम संवत में यह सोलहवीं तारीख है.

शक संवत और विक्रम संवत दोनों ही प्राचीन हिन्दू कैलेंडर है। जिनकी रचना प्राचीन समय मे चन्द्र चक्र के अनुसार है। इन दोनों ही कैलेंडर में महीनों और नाम एवं गिनती समान है साथ ही दोनों में नियम भी समान है।

परंतु दोनों में एक ही अंतर सबसे प्रमुख माना जाता है। विक्रम संवत में महीने की सुरुआत की गड़ना पूर्णिमा से और शक संवत में अमावस्या से की जाती है। शक संवत राष्ट्रीय कैलेंडर या पंचांग होते हुए भी विक्रम संवत अधिक प्रचलित है।

समस्त विश्व में अनेक धर्मो और सभ्यताओं के अनुसार अलग अलग कैलेंडर का इस्तेमाल किया जाता है। इसी तरह भारत मे भी अनेक प्रकार के कैलेंडर का उपयोग होता है। इन सभी कैलेंडर की अपनी मान्यता और काल चक्र की गड़ना है। परंतु इन सभी मे दो शक संवत और विक्रम संवत की मान्यता सबसे अधिक है ये हिन्दू कैलेंडर है। इनमें साल में बारह महीनों और सप्ताह में सात दिन की पद्यति है। और इन दोनों में काल गड़ना चंद्र चक्र के अनुसार है। दुनियाभर भर में सभी कैलेंडर की काल गड़ना दो पद्यतियों से होती है एक सौर चक्र और दूसरी चंद्र चक्र।

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भारत में औपचारिक रूप से सन् 1957 में ग्रेगोरियन कैलेंडर को लागू किया गया क्योंकि सारे विश्व मे इसी कैलेंडर का इस्तेमाल किया जाता था, अतः सारे देश मे दिन और तारीख के साथ साथ छुट्टियां भी इसी ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार तय की जाती है। 

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