जरूरत पड़ी तो कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन के लिए बूस्टर डोज़ ला सकता है सीरम इंस्टिट्यूट परीक्षण के बाद होगा फैसला

जरूरत पड़ी तो कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन के लिए बूस्टर डोज़ ला सकता है सीरम इंस्टिट्यूट परीक्षण के बाद होगा फैसला

जरूरत पड़ी तो कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन के लिए बूस्टर डोज़ ला सकता है सीरम इंस्टिट्यूट परीक्षण के बाद होगा फैसला

दुनिया भर में कोरोना महामारी का खतरा लगातार बना हुआ है और इसके खिलाफ सबसे प्रभावी हथियार के तौर पर वैक्सीनेशन कार्यक्रम भी तेजी से चल रहा है. वहीं कुछ देश बूस्टर डोज के लिए भी योजना बना रहे हैं. ऐसे में डब्ल्यूएचओ का कहना है कि जिन लोगों को कोरोना से संक्रमित होने का अधिक खतरा है, उन्हें अमीर देशों द्वारा बूस्टर डोज का विकल्प आजमाने से पहले ही जल्द से जल्द वैक्सीन की दोनों डोज ले लेनी चाहिए.

अंग प्रत्यारोपण करा चुके लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होती है। संभव है कि दो डोज से उनके भीतर पूरी तरह इम्युनिटी नहीं बनी हो। ऐसे लोगों को दूसरी डोज के 28 दिन बाद ही टीके की तीसरी डोज लगेगी। जिनका इम्यून सिस्टम ठीक है उन्हें तीसरी डोज थोड़े ज्यादा समय बाद लगेगी।

कोरोना के ओमिक्रॉन वैरिएंट के खिलाफ सीरम इंस्टीट्यूट बूस्टर डोज लाने की तैयारी में है। हालांकि, अभी इस नए वैरिएंट के बारे में हो रहे अध्ययनों और उनके निष्कर्षों का इंतजार किया जा रहा है। सीरम इंस्टीट्यूट के प्रमुख अदार पूनावाला ने एक मीडिया चैनल को दिए साक्षात्कार में बताया कि ओमिक्रॉन पर हो रहे शोध को पूरा होने में एक से दो सप्ताह का समय लगेगा। हम उन निष्कर्षों का इंतजार कर रहे हैं, अगर जरूरत पड़ी तो हम नया टीका तैयार करेंगे। 

वैज्ञानिकों के अनुसार, बूस्टर डोज का समय इस आधार पर तय होगा कि आपको टीके की दो डोज कब लगी थी। अभी स्वास्थ्य विभाग से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि टीके की दूसरी डोज के आठ माह बाद तीसरी डोज लगाई जा सकती है। हालांकि इसके लिए अभी प्राथमिकता तय होनी है।

डब्ल्यूएचओ के वरिष्ठ सलाहकार ब्रूस एइलवार्ड ने अमीर देशों द्वारा बूस्टर डोज को लगाएअ जाने का संदर्भ देते हुए कहा कि दुनिया भर में पर्याप्त वैक्सीन उपलब्ध हैं लेकिन यह सही क्रम में सही जगह पर उपलब्ध नहीं है. उन्होंने कहा कि दुनिया भर में कोरोना का खतरा बना हुआ है और सबसे पहले लोगों को वैक्सीन की दो डोज उपलब्ध कराई जानी चाहिए. इसके बाद ही बूस्टर डोज के बारे में सोचा जाना चाहिए. डब्ल्यूएचओ के वरिष्ठ सलाहकार का कहना है कि अभी हम लोगों को वैक्सीनेशन के मामले में अभी बहुत लंबा सफर करना है.

टीका का निर्माण करने वाले कुछ कंपनियों का मानना है कि उनकी वैक्सीन कोरोना के सभी प्रकारों या वैरिएंट्स पर असरदार है जबिक कुछ कंपनियों ने पाया है कि समय के साथ उनका टीके का असर कम हुआ है। ऐसे में टीका निर्माता कंपनियां बूस्टर डोज का विकल्प पेश कर रही हैं। अमेरिकी टीका निर्माता कंपनी फाइजर अपने कोरोना टीके का बूस्टर डोज लाना चाहती है और इसके लिए उसने नियामकों से मंजूरी मांगी है। संयुक्त अरब अमीरात, थाइलैंड और बहरीन जैसे देश जिन्होंने अपने यहां लोगों को ऑक्सफोर्ड एस्ट्राजेनेका का डोज लगाया है, इन देशों ने भी टीके का बूस्टर डोज लगाने का फैसला किया है।  

अदार पूनावाला ने कहा कि द लैंसेट के अध्ययन में सामने आया है कि कोविशील्ड 63 प्रतिशत तक कोरोना पर असरदार है और यह अस्पताल में भर्ती होने की संभावना को भी कम करती है। इसके बावजूद अगर लोगों को बूस्टर डोज देने की आवश्यकता पड़ी तो हमारे पास पर्याप्त खुराक आरक्षित है। उन्होंने बताया कि हमारे पास दो करोड़ से ज्यादा खुराक अभी मौजूद हैं, सरकार घोषणा करती है तो हम उसे उपलब्ध कराएंगे। 

बूस्टर डोज के तौर पर कौन सा टीका लगेगा, ये अभी स्पष्ट नही है। फिलहाल यही कहा जा रहा है कि जिसे जिस कंपनी का टीका पहले लगा है, उसे उसी कंपनी का टीका तीसरी डोज के तौर पर लगेगा। हालांकि इस पर अध्ययन जारी है कि क्या मिक्स डोज का इस्तेमाल हो सकता है जो सुरक्षित हो।

अदार पूनावाला ने कहा कि जिन लोगों ने टीके की एक ही खुराक ली है या एक भी नहीं ली है। उन्हें दोनों खुराक लेनी चाहिए। इसके बाद ही अगर आवश्यकता पड़ती है तो बूस्टर डोज का इस्तेमाल किया जा सकता है। हालांकि, फिलहाल सरकार की बूस्टर डोज देने की कोई योजना नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत और यूरोपियन देशों की स्थितियों में बहुत अंतर है। 

वैज्ञानिकों ने देखा है कि टीके से बनी एंटीबॉडीज कुछ समय बाद कम होती है, लेकिन पूरी तरह खत्म नहीं होती है। संभव है कि बूस्टर डोज न लगे और संक्रमण हो जाए तो शरीर को वायरस से लड़ने में अधिक मेहनत करनी पड़े। 

अदार पूनावाला ने बताया कि अगर जरूरत पड़ी तो जो नया टीका तैयार होगा वह बूस्टर डोज के रूप में दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि उसे तैयार करने में छह महीने का समय लग सकता है। उन्होंने कहा कि शोध के आधार पर ही हम तय करेंगे कि यह तीसरा या चौथा टीका होगा या बूस्टर डोज। हो सकता है कि ओमिक्रॉन के लिए अतिरिक्त टीके की आवश्यकता ही न पड़े। 

कोरोना के ओमिक्रॉन वैरिएंट के खिलाफ सीरम इंस्टीट्यूट बूस्टर डोज लाने की तैयारी में है। हालांकि, अभी इस नए वैरिएंट के बारे में हो रहे अध्ययनों और उनके निष्कर्षों का इंतजार किया जा रहा है। सीरम इंस्टीट्यूट के प्रमुख अदार पूनावाला ने एक मीडिया चैनल को दिए साक्षात्कार में बताया कि ओमिक्रॉन पर हो रहे शोध को पूरा होने में एक से दो सप्ताह का समय लगेगा। हम उन निष्कर्षों का इंतजार कर रहे हैं, अगर जरूरत पड़ी तो हम नया टीका तैयार करेंगे। 

किसी खास रोगाणु अथवा विषाणु के खिलाफ लड़ने में बूस्टर डोज शरीर की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता और मजबूत करता है। यह बूस्टर डोज उसी वैक्सीन की हो सकती है जिसे व्यक्ति ने पहले लिया है। बूस्टर डोज शरीर में और ज्यादा एंटीबॉडीज का निर्माण करते हुए प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करता है। बूस्टर डोज शरीर की प्रतिरधक क्षमता को यह याद दिलाता है उसे किसी खास विषाणु से लड़ने के लिए तैयार रहना है। 

भारत की जरूरत के हिसाब से वैक्सीन की पर्याप्त डोज उपलब्ध होने के बाद भारत इस साल की चौथी तिमाही में वैक्सीन कमर्शियल एक्सपोर्ट भी कर सकता है। यह याद रखना होगा कि बूस्टर डोज उन्हीं लोगों को दिया जा सकता है जिन्होंने अपने टीके की पूरी खुराक ली हो। चूंकि दुनिया भर में कोविड-19 के नए वैरिएंट सामने आ रहे हैं ऐसे में स्वास्थ्य संस्थाएं बूस्टर डोज देने से पहले कई चीजों के बारे में सोचेंगी। सबसे पहले बूस्टर डोज बुजुर्ग लोगों को देने के बारे में सोचा जा सकता है। या इसे ऐसे लोगों को पहले दिया जा सकता है जिनका शरीर ज्यादा मात्रा में एंटीबॉडीज नहीं पैदा किया हो। या जब यह भी लगे कि किसी खास वैक्सीन की ओर से पैदा की गई एंटीबॉडी को नया वैरिएंट चकमा दे रहा है तो ऐसे समय में बूस्टर डोज की जरूरत पड़ सकती है। 

समाचार पत्रों और इंटरनेट से प्राप्त जानकारी के आधार पर संकलित लेख