भारत के एकमात्र बचे पहले सफ़ेद बाघ की अनसुनी सत्य कथा-सफेद बाघ भारत का गौरव
दुनिया में वर्तमान में जहां भी सफेद बाघ हैं, उन सबका डीएनए विंध्य और रीवा से जुड़ा हुआ है। सफेद बाघ को महाराजा मार्तंड सिंह ने 27 मई, 1951 को सीधी जिले के बरगाड़ी के क्षेत्र से पकड़ा था और बाद में इस सफेद बाघ शावक को रीवा के गोविंदगढ़ पैलेस में लाया गया था। और नाम रखा गया मोहन। मोहन दो दशकों तक इस क्षेत्र में रहा और इसकी संतानें धीरे-धीरे दुनिया के अन्य हिस्सों में फैल गईं| भारत के एकमात्र बचे पहले सफ़ेद बाघ की अनसुनी सत्य कथा-सफेद बाघ भारत का गौरव
भारत के एकमात्र बचे पहले सफ़ेद बाघ की अनसुनी सत्य कथा-सफेद बाघ भारत का गौरव
दुनिया में वर्तमान में जहां भी सफेद बाघ हैं, उन सबका डीएनए विंध्य और रीवा से जुड़ा हुआ है। सफेद बाघ को महाराजा मार्तंड सिंह ने 27 मई, 1951 को सीधी जिले के बरगाड़ी के क्षेत्र से पकड़ा था और बाद में इस सफेद बाघ शावक को रीवा के गोविंदगढ़ पैलेस में लाया गया था। और नाम रखा गया मोहन। मोहन दो दशकों तक इस क्षेत्र में रहा और इसकी संतानें धीरे-धीरे दुनिया के अन्य हिस्सों में फैल गईं|
कुछ ऐसा रहा था सफ़ेद बाघ मोहन के जीवन का सफर -
-*- 1955 में पहली बार सामान्य बाघिन के साथ ब्रीडिंग कराई गई, जिसमें एक भी सफेद शावक नहीं पैदा हुए।
-*- 30 अक्टूबर 1958 को मोहन के साथ रहने वाली राधा नाम की बाघिन ने चार शावक जन्मे, जिनका नाम मोहिनी, सुकेशी, रानी और राजा रखा गया।
-*- 19 वर्षों तक जिंदा रहे तीन मादाओं के साथ मोहन के संसर्ग गोविंदगढ़ में लगातार सफेद शावक पैदा होते गए। मोहन से कुल 34 शावक जन्मे, जिसमें 21 सफेद थे। इसमें 14 राधा अकेले नाम की बाघिन के थे।
-*- गोविंदगढ़ किले में 6 सितंबर 1967 को मोहन और सुकेशी से चमेली जन्मी और 17 नवंबर 1967 को विराट नाम का सफेद शावक जन्मा।
-*- 1972 में मोहन की मौत के बाद सुकेशी नाम की बाघिन को दिल्ली के चिडिय़ाघर भेजा गया।
-*- 1973 में चमेली को लेकर मोहन के केयर टेकर पुलुआ बैरिया को भी दिल्ली बुला लिया गया। 2003 तक दिल्ली के चिडिय़ाघर में उन्होंने सेवाएं दीं।
-*- 8 जुलाई 1976 को आखिरी बाघ के रूप में बचे विराट की भी मौत हो गई। 40 साल तक सफेद शेरों से रीवा वीरान रहा।
-*- 9 नवंबर 2015 को सफारी में विंध्या को लाया गया।
मोहन के जीवन काल के अंतिम समय में बीमार होने पर इंग्लैंड के डॉ. वेल्सन ने लंबे समय तक मोहन की देखरेख की और उन्होंने नए सिरे से आहार की मात्रा निर्धारित की थी। मौत से कुछ समय पहले मोहन के पैर में लकवा मार गया। 10 दिसंबर 1969 को मोहन का निधन हो गया।
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