आपातकाल की 47व़ी बरसी पर, यूपी प्रेस क्लब में हुई लोकतंत्र रक्षको की बैठक, दर्ज़ कराया गया विरोध
25 जून 1975 को आज़ाद भारत एक बार फिर आंतरिक गुलामी की बेडियों में जकड़ गया था| आपातकाल के कालखंड को याद करते हुए उन्होंने कहा तानाशाही सरकार ने “न अपील, न वकील, न दलील” के सिद्धांत पर आपातकाल का विरोध करने वाले समस्त राजनेताओ, विद्याथियो को जेल की काल कोठरियों में डाल दिया गया था, और अनेकों प्रकार की अमानवीय यातनाए देकर आन्दोलन को कमजोर करने का प्रयास किया, उन्होंने कहा कि जनता के मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात कर तत्कालीन तानाशाह ने आचार्य विनोवा भावे तक को अपमानित किया था किन्तु 7 तालों के भीतर कुम्भकरणी नींद सोयी सरकार कों उखाड़ फेकने की कसम खा चुके लोकतंत्र रक्षक “हटे नहीं, डिगे नहीं, डटे रहे”|
25 जून सन 1975 को अपनी सत्ता और कुर्सी सदा सर्वदा बनाए रखने की नियत से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने देश में आपातकाल घोषित कर देश के बुद्धिजीवियों तथा अपने विरोधी राजनेताओ को मीसा- डी०आई०आर० जैसे काले कानूनों के अंतर्गत कारागारो में बंद कर दिया| आपातकाल की 47व़ी बरसी पर प्रदेश भर के लोकतंत्र रक्षक आज लखनऊ प्रेस क्लब पर एकत्र हुए और आपातकाल लगाएं जाने के विरुद्ध अपना विरोध दर्ज कराया|
समिति के प्रदेश अध्यक्ष ब्रज किशोर मिश्र ने कहा कि 25 जून 1975 को आज़ाद भारत एक बार फिर आंतरिक गुलामी की बेडियों में जकड़ गया था| आपातकाल के कालखंड को याद करते हुए उन्होंने कहा तानाशाही सरकार ने “न अपील, न वकील, न दलील” के सिद्धांत पर आपातकाल का विरोध करने वाले समस्त राजनेताओ, विद्याथियो को जेल की काल कोठरियों में डाल दिया गया था, और अनेकों प्रकार की अमानवीय यातनाए देकर आन्दोलन को कमजोर करने का प्रयास किया, उन्होंने कहा कि जनता के मौलिक अधिकारों पर कुठाराघात कर तत्कालीन तानाशाह ने आचार्य विनोवा भावे तक को अपमानित किया था किन्तु 7 तालों के भीतर कुम्भकरणी नींद सोयी सरकार कों उखाड़ फेकने की कसम खा चुके लोकतंत्र रक्षक “हटे नहीं, डिगे नहीं, डटे रहे”| लोकशक्ति और तानाशाह के मध्य हुए इस जबरदस्त संघर्ष में अलोकतांत्रिक शक्तियों को धूल धूसरित करते हुए लोकतंत्र पुनः बहाल हुआ|
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए भारत सरकार के मंत्री कौशल किशोर ने कहा कि आपातकाल देश का एक ऐसा काला कालाखंड है जिसको कभी भुलाया नहीं जा सकता। तानाशाही मानसिकता देश के लिए कितनी खतरनाक है यह आपातकाल के उस कालखंड को याद करके जाना जा सकता है। केंद्रीय मंत्री कौशल किशोर ने कहा कि लोकतंत्र सेनानियों की हर मांग को पूरा करने की जिम्मेदारी सरकार की है और यह हर हाल में पूरी होगी।
इंडियन फेडरेशन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट के राष्ट्रीय अध्यक्ष और बडौदा डायनामाईट कांड के मुख्य आरोपी रहे के०विक्रम राव ने कहा कि स्वंत्रत भारत में आपातकाल जैसे हालात बिल्कुल भी स्वीकार्य नहीं है| आपातकाल बुनियादी तौर पर फांसीवादी मानसिकता की देन है| जबतक शस्त्र और शोषण रहेगा तबतक आपातकाल की संभावनाओं से इनकार नहीं किया जा सकता|
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए लोकतंत्र सेनानी राजेन्द्र तिवारी ने कहा कि आपातकाल में लोकतंत्र सेनानियों को दी गयी यातनाओं को जिक्र करते हुए कहा कि अहिंसक आन्दोलन कर जेल जाने वाले लोगों को रात-रात भर बर्फ की सिल्लियों से बाँध कर लिटाना, नाखूनों में कील ठोकना, पंखो से उल्टा लटकाने जैसी ना जाने कितनी ही अमानवीय यातनाए लोकनायक जयप्रकाश तथा अन्य अनेको लोकतंत्र समर्थक राजनैतिक बंदियों को आपातकालीन अवधि में दी गई| उन्होंने स्व० श्री मोरारजी देसाई को बयालीसबां संविधान संशोधन (मूलाधिकार ख़त्म करने वाला) निरस्त करने का श्रेय देते हुए कहा कि अब कोई भी तानाशाह आपातकाल लगाने जैसी हरकत नहीं कर पायेगा|
इंटरनेशनल शोसिलिस्ट कौंसिल के सचिव दीपक मिश्रा ने आपातकाल का विरोध जताते हुए कहा कि भारतीय जीवन में लोकतंत्र लोकजीवन का धर्म है और आज भी लोकतंत्र पर किश्तों में आघात हो रहे है| आपातकाल से सबक लेते हुए हम सभी को लोकतंत्र के सभी पक्षों को मजबूत करने का प्रण लेना होगा ताकि देश को दुबारा आपातकाल जैसी दु:खद घटना का सामना न करना पड़े| लोकतंत्र की रक्षा हेतु जिस प्रकार लोकरक्षक सेनानियों ने संघर्ष किया वो पूरी दुनिया के सामने अनूठा व अनन्य उदहारण है|
लोकतंत्र सेनानी एवं पूर्व मंत्री राजेन्द्र तिवारी ने बताया कि आपातकाल में लोकतंत्र रक्षकों को स्वमूत्र तक पिलाई गयी और उनका मनोबल गिराने के लिए उन्हें विभिन्न प्रकार की अमानवीय यातनाये दी गई, किसी के नाख़ून खीचें गये तो किसी के गुप्तांगो में मिर्च ठूसी गई किन्तु लोकतंत्र रक्षको ने उस बर्बर तानाशाह के सामने सर झुकाने से मना कर दिया जिसके परिणाम स्वरुप ना जाने कितने ही लोकतंत्र सेनानियों की कारागार के अंदर ही मृत्यु हो गई|
समिति के प्रदेश महामंत्री रमाशंकर त्रिपाठी ने कहा कि अपना सिंहासन को बचाने की नियत इंदिरा गाँधी ने देश में एमरजेंसी लगा दी और मनमाना शासन चलाने लगी, आपातकाल के दौरान कानून का राज़ ख़त्म हो गया और बर्तानिया सरकार से भी ज्यादा बर्बर यातनाए राजनैतिक बंदियों को दी गई| उन्होंने कहा कि आपातकाल के दौरान किये गए जनान्दोलनों और संघर्षो का ही परिणाम है कि देश में लोकतांत्रिक सरकारे शासन कर रही है|
लोकतंत्र सेनानी चंद्रवीर गहलोत ने आपातकाल के उन उन्नीस महीनों को याद करते हुए कहा कि जेल के अंदर प्रतीत नहीं होता था कि आपातकाल का न्रसंश राज कभी ख़त्म होगा और अब हम लोग कभी जेल की काल कोठरियों से बाहर निकल पायेगे| लोकतंत्र रक्षकों के संघर्ष को याद करते हुए उन्होंने कहा आपातकाल के दौरान हुए संघर्ष में समूचा देश जुड़ गया था, और वक्त साक्षी है कि अगर देश में कभी अलोकतांत्रिक शक्तियों ने सर उठाने की कोशिश की है तो इस देश का युवा इसी प्रकार उसका दमन करेगा|
इससे पूर्व दोपहर 12 बजे लोकतंत्र सेनानियों राज्यपाल श्रीमती आनंदीबेन पटेल को प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को संबोधित एक ज्ञापन भी सौपा जिसमे प्रधानमन्त्री से लोकतंत्र सेनानियों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की भातिं सभी सुविधाए एवं सम्मान देने, समस्त जनपद मुख्यालयों पर लोकतंत्र सेनानियों की स्मृति में एक विजय स्तम्भ की स्थापना करने, तानाशाह के विरुद्ध संघर्ष में अपने प्राण न्योछावर करने वाले लोकतंत्र सेनानियों को शहीद का दर्जा देने, आपातकाल के कालखंड को पाठ्यक्रम में सम्मलित करने एवं लोकतंत्र सेनानियों के लिए पारिवारिक पेंशन( सम्मान राशि) योजना लागू करने की मांग की गई|
इस मौके पर प्रमुख रूप से महंत बाबा बालकदास, टापूराम गुप्ता, अजीत सिंह, सुभाष आनन्द , रामसनेही कनोजिया, जमादार सिंह यादव, रामदीन शाक्य, चंद्रशेखर कटियार, छत्रसाल सिंह सेंगर, माताप्रसाद तिवारी, चन्द्रभान मिश्र, शिवभजन त्रिवेदी, टीकम सिंह, चेतराम, राजकुमार चतुर्वेदी, डा० आई०ए०शादानी, मकबूल बेग, बीरेन्द्र कटियार, अवनीश कटियार, अरुण प्रकाश कटियार, हरीशचन्द्र पाण्डेय, रामदीन शाक्य, शिवपाल सिंह, कृष्ण मुरारी पाठक, विजय वर्मा, जगदीश पाण्डेय, सुखेन्द्र पाल दुबे, राजेन्द्र त्रिपाठी, शिवराम सिंह, भूपाल सिंह, शंकरलाल सक्सेना, श्रीराम यादव, समरादित्य सिंह, रामवृक्ष तिवारी, रामनारायण, देवता प्रसाद समेत प्रदेश के विभिन्न विभिन्न स्थानों से आये अनेको लोकतंत्र सेनानी मौजूद रहे|