कड़ी सुरक्षा के बीच भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा की शुरुआत, अहमदाबाद में अमित शाह ने की आरती
भारत के चार पवित्र धामों में से एक है उड़ीसा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर। यहां हर साल आषाढ़ माह में भव्य रथ यात्रा का आयोजन किया जाता है। हिंदू धर्म में जगन्नाथ रथ यात्रा का बहुत महत्व है। भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा का शुभारम्भ ओडिशा के पुरी में हो गया है। इसके लिए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। पुरी में भगवान जगन्नाथ, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन देवी सुभद्रा की 1 जुलाई से शुरू होने वाली नौ दिवसीय रथ यात्रा में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के तहत 200 पुलिस उपाधीक्षक और 50 अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक सहित लगभग 65 प्लाटून पुलिस तैनात की गयी है ।
हिंदू धर्म में इस रथ यात्रा का विशेष महत्व है इस यात्रा में शामिल होने के लिए लोग सिर्फ देश से ही नहीं बल्कि विदेश से भी आते हैं। हिंदू धर्म में जगन्नाथ पुरी को मुक्ति का द्वार भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो भी इस यात्रा में शामिल होता है उसके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि जो व्यक्ति इस रथ यात्रा में शामिल होकर भगवान के रथ को खींचते है उसे 100 यज्ञ करने के फल मिलता है। साथ ही इस यात्रा में शामिल होने वाले को मोक्ष प्राप्त होता है। पुराणों के अनुसार, आषाढ़ मास से पुरी तीर्थ में स्नान करने से सभी तीर्थों के दर्शन करने जितना पुण्य मिलता है।
इस बीच केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अमहदाबाद में मंगला आरती की है. भगवान जगन्नाथ यात्रा की शुरुआत को लेकर अमित शाह ने हिंदी और ओडिया भाषा में ट्वीट किए हैं. उन्होंने लिखा कि आस्था और भक्ति के अनूठे संगम श्री जगन्नाथ रथयात्रा के पवित्र अवसर पर सभी देशवासियों को शुभकामनाएं. महाप्रभु जगन्नाथ जी से सभी के सुखी और अरोग्यमय जीवन, समृद्धि और खुशहाली की प्रार्थना करता हूं. जय जगन्नाथ!
रथ यात्रा 2022 शेड्यूल-
1 जुलाई 2022- रथ यात्रा प्रारंभ
5 जुलाई- हेरा पंचमी, पहले पांच दिन गुंडिचा मंदिर में वास करते हैं.
8 जुलाई- संध्या दर्शन, मान्यता है कि इस दिन भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने से
10 साल श्रीहरि की पूजा के समान पुण्य मिलता है.
9 जुलाई- बहुदा यात्रा, भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व बहन सुभद्रा की घर वापसी.
10 जुलाई- सुनाबेसा, जगन्नाथ मंदिर लौटने के बाद भगवान जगन्नाथ अपने भाई-बहन के साथ शाही रूप लेते हैं.
11 जुलाई- आधर पना, आषाढ़ शुक्ल द्वादशी पर दिव्य रथों पर एक विशेष पेय अर्पित किया जाता है। इसे पना कहते हैं.
12 जुलाई- नीलाद्री बीजे, नीलाद्री बीजे जगन्नाथ यात्रा का सबसे दिलचस्प अनुष्ठान है.
हर साल आषाढ़ शुक्ल द्वितीय तिथि को भगवान जगन्नाथ अपनी मौसी के घर जाते हैं इस दौरान वह अकेले नहीं जाते बल्कि उनके साथ उनके बड़े भाई बलराम और छोटी बहन सुभद्रा भी जाती हैं। ये तीनों तीन अलग अलग रथों पर सवार होकर जाते हैं। इसके बाद यह तीनों गुंडीचा मंदिर पहुंच जाते हैं। गुंडीचा मंदिर जगन्नाथ मंदिर से करीब तीन किलोमीटर दूर है। भक्त पूरी श्रद्धा के साथ भगवान जगन्नाथ के रथ को खींचकर उन्हें गुंडीचा पहुंचाते हैं। इसके बाद आषाढ़ शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को तीनों वापस अपने स्थान पर लाए जाते हैं। पुराणों के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जाहिर की थी. तब जगन्नाथ जी और बलभद्र अपनी बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े. इस दौरान वे मौसी के घर गुंडिचा भी गए और सात दिन ठहरे. तभी से यहां पर रथयात्रा निकालने की परंपरा है. इस रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ तीन भव्य रथों में सवार होकर निकलते हैं. इसमें पहला रथ भगवान जगन्नाथ का, दूसरा भाई बलराम और तीसरा बहन सुभद्रा का होता है.